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चरकसंहिता-माटी। अन्यस्यापिचरोगस्यपूर्वरूपाणियं नरम् ! . . .
विशन्त्येतेनकल्पेनतस्यापिमरणंध्रुवम् ॥ ३ ॥ . अन्य रोगोंमें भी यदि किसी रोगके संपूर्ण पूर्वरूप बलवान होकर अधिकरूपसे जिस मनुष्यके शरीरमें प्रवेश करतेहै तो उसकी अवश्य मृत्यु होजातीहै ॥ ३ ॥
पूर्वरूपैकदेशांस्तुवक्ष्यामोऽन्यान सुदारुणान् । .
सेरोगाननुबध्नान्तिमृत्युर्यैरनुबध्यते ॥४॥ अब अन्य रोगोंमें भी जो दारुण पूर्वरूप होनेसे रोग मनुष्यकी मृत्यु कर देते. उन पूर्वरूपोंका वर्णन करते हैं ॥ ४॥
भिन्न २ मृत्युकारक रोग।। बलञ्चहीयतेयस्यप्रतिश्यायश्चवईते।
तस्यनारीप्रसक्तस्यशोषोन्तायोपजायते ॥५॥ जिस मनुष्यका बल क्षीण होगयाहो और प्रतिश्याय बहुत जोरसे बढाहुआ हो -वह मनुष्य यदि स्त्रीसंगमें आसक्त रहे तो उस मनुष्यको शोषरोग अवश्य नष्ट करदेताहै ॥ ५ ॥
श्वभिरुष्ट्रःखरैपियातियोदक्षिणांदिशम् ।
स्वप्नेयक्ष्माणमासाद्यजीवितंसविमुञ्चति ॥ ६॥ जो मनुष्य स्वप्नमें कुचा, उंट वा गधेके ऊपर चढकर दक्षिणकी ओर गमन करे उस मनुष्यको राजयक्ष्मा रोग प्रवेश कर उसके जीवनको नष्ट करदेताहै ॥६॥
प्रेतैःसहपिबेन्मद्यस्वप्नयःकृष्यतेशुना ।
सघोरंज्वरमासाद्यनजावेनचसृज्यते ॥ ७॥ जो मनुष्य स्वप्नमें प्रेतों (मरेहुए) के साथ मिलकर प्रद्यको पीताहै अथवा जिसको स्वप्नमें कुचे घसीटते हैं उस मनुष्यको घोर ज्वर उत्पन्न होकर नष्ट करदेताहै ॥७॥
लाक्षारक्ताम्बराभं यःपश्यत्यम्बरमन्तिकात् ।
सरक्तपित्तमासाद्यतेनैवान्तायनीयते ॥८॥ जिस मनुष्यको अपने समीपका आकाश लाखके रंगसे रंगाहुमासा प्रतीत होर उस मनुष्यको.रक्तपित्त रोग होकर शीघ्र यमलोकको लेजानाहै ॥८॥
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