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(८३२) चरकसंहिता-मा० टी०।
स्नेहंबहुविधस्वभेचण्डाल सहयःपिबेत् ।
बुध्यतेसप्रमेहणस्पृश्यतेऽन्तायमानवः ॥१५ ॥ जो मनुष्य स्वप्नमें चाण्डालोंके साथ मिलकर अनेक प्रकारके घृत, तेलभादिकोंका पान करताहै उसकी प्रमेह रोगसे मृत्यु होती है ॥ १५ ॥
ध्यानायासौतथोद्वेगोमोहश्चास्थानसम्भवः ।
अरतिर्बलहानिश्चमृत्युरुन्मादपूर्वकः ॥ १६ ॥ जिस मनुष्यको ध्यान, थकावट, घबराहट, भ्रम, उद्वेग और मोह तथा वित्तकाः न लगना यह सब एकही कालमें उत्पन्न होजाय उसकी उन्माद रोगसे मृत्यु होती
आहारद्वषिणपश्यल्लुंतचित्तमुदार्दितम् ।
विद्याद्धारोमुमघुतमुन्मादेनातिपातिना ॥ १७ ॥ जिस मनुष्यको भोजनके सब पदार्थ बुरे प्रतीत होतेहों और ज्ञान जातारहे,उदर्द रोग हो उस मनुष्यको बुद्धिमान उन्माद रोगसे मृत्यु होनेवाला जाने ॥१७॥
क्रोधनत्रासबहुलंसकत्प्रहसिताननम् ।
मच्छापिपासाबहलंहन्त्युन्मादःशरीरिणम् ॥ १८॥ जिस मनुष्यको अत्यन्त क्रोध,त्रास,और हास्य ये एककालमें ही प्रगट होजाय तथा वारवार मूर्छा आर प्यासकी अधिक. उसकी उन्माद रोगसे मृत्यु होतीहै ॥ १८॥
नृत्यन्त्रक्षोगणेःसाईयःस्वप्नेऽम्भासिसीदति ।
सप्राप्यभृशमुन्मादयातिलोकमतःपरम् ॥ १९ ॥ जो मनुष्य स्वप्नमें राक्षसों के साथ नाच करता हुआ जलमें डूवजाय वह उन्माद रोगसे ग्रसित होकर परलोकको प्राप्त होताहै ॥ १९ ॥.
असत्तमः पश्यतियःशृणोत्यप्यसतःवरान् ।
बहून्बहुविधाजाप्रत्सोऽपस्मारणबध्यते ॥२०॥ जिस मनुष्यको विना अंधकारके अंधकार प्रतीत होताहो और बिना ही किसीप्रकारको आवाजसे अनेक प्रकारके गायनके स्वरोंको श्रवण करे वह मनुष्यः मुगी रोगसे मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २०॥