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वरकसंहिता - मा० टी० ।
· सुनाई पडनेवाला अनाहत शब्द जो होता है उसको न सुनसके उसकी व्यवश्य मृत्यु होती है | बुद्धिमान् वैद्य ऐसे रोगियोंको मृतप्राय समझकर त्याग देवे ॥ १८ ॥ नासिकाद्वारा परीक्षा ।
विपर्ययेणयोविद्याद्धानां साध्वसाधुताम् । नवातान्सर्वशेोविद्यात्तविद्याद्विगतायुषम् ॥ १९ ॥
जो रोगी उत्तम सुगंधिको दुर्गंध और दुर्गंधको उत्तम सुगंध प्रतीत करे अथवा "बिल्कुल गंधज्ञानरहित होजाय उसको गतायु जानना चाहिये ॥ १९ ॥
त्वचाद्वारा परीक्षा | योरसान्नाविजानातिनवाजानातितत्त्वतः ।
मुखपाकादृते पक्कंतमाहुः कुशलानरम् ॥ २० ॥
जिस रोगीको विना किसी मुखके विकारके किसी प्रकार के भी मीठे हे रसका ज्ञान हो अथवा रसके तत्त्वको न जानसके उस मनुष्यको मरणासन्न जानना -चाहिये ॥ २० ॥
उष्णाञ्छीतान्खराज्छुणान्मृदूनपिचदारुणान् । स्पर्शान्स्पृष्ट्वा ततोऽन्यत्वंमुमूर्षुस्तेषुमन्यते ॥ २१ ॥
जो मनुष्य उष्ण द्रव्योंको शीतल, खरदरे द्रव्योंको चिकने, नरम द्रव्योंको कठोर इनके सिवाय अन्य भी स्पृश्य वस्तुओंको स्पर्श कर विपरीत प्रतीत करे उसको भी मरनेवाला जानना चाहिये ॥ २१ ॥ अन्तरेणतपस्तीत्र्योगंवाविधिपूर्वकम् ।
इन्द्रियैरधिकं पश्यन्पञ्चत्वमधिगच्छति ॥ २२ ॥
जो मनुष्य तीव्र तपस्या के विना अथवा विधिवत् योगसाधन विना अतीन्द्रिय विषयोंको जानने लगजाय अथवा इन्द्रियोंसे देखने लगजाय वह मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २२ ॥
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इन्द्रियाणामृते दृष्टेरिन्द्रियार्थान्न पश्यति ।
विपर्य्ययेणयोविद्यात्तविद्याद्विगतायुषम् ॥ २३ ॥
जो मनुष्य दृष्टिके विना अन्य इंद्रियकि शब्दादि ज्ञानको न जानसके परन्तु : दृष्टिद्वारा अन्य इन्द्रियों के विषयोंको भी जानने लगजाय अथवा संपूर्ण इन्द्रि योक ज्ञानको विपरीत भावसे जाने वह मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २३ ॥
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