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इन्द्रियस्थान - ० ३.
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और कनपटी आदि अंग अलग २ अपने स्थानसे छूटजायँ और हटजायं तो उस मनुष्यको गतायु अर्थात् शीघ्र मरनेवाला जानना चाहिये ॥ ५ ॥
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तथास्योच्छासमन्यादन्तपक्ष्मचक्षुः केशलोमोदरन खांगुलीरालक्षयेत् । तस्य चेदुच्छ्रासोऽतिदीर्घः अतिह्रस्वोवास्यात्परासुरितिविद्यात् । तस्यचेन्मन्ये परिदृश्यमानेनस्पन्देयातां परासुरिति विद्यात् । तस्यचेद्दन्ताःप्रतिकीर्णाः श्वेतजातशर्कराः स्युः परासुरितिविद्यात् । तस्यचेत्पक्ष्माणिजटावद्वानिस्युः परासुरितिविद्यात् । तस्यचेच्चक्षुषी प्रकृतिहीने विकृतियुक्त अव्युत्पिण्डितेअतिप्रविष्टेअतिजिह्मेअतिविषमेअतिप्रस्रुतेअतिविमुक्तवन्धने सततोन्मेषितसततनिमेषितेनिमेषोन्मषातिप्रवृत्तविभ्रान्तहष्टिकेतिपरीतदृष्टि केहीन दृष्टिकेव्य स्तदृष्टि केन कुलान्धेकपोतान्धे अलातवर्णेकृष्णनीलपीतश्यावताग्रहरितद्दारिद्रशक्कवैकारिकाणांवर्णानामन्यतमेनाभितं कृतवास्यातांपरा सुरितिविद्यात् ६ ॥
तथा रोगीके उच्छ्रास, ठोडी, दांत, पलकें, नेत्र, केश, लोम, उदर, नख और अंगुली इनकी भी परीक्षा करनी चाहिये । यदि रोगीका उच्छ्रास अत्यंत लंबा या बहुतही ह्रस्व चलने लगे तो रोगीको प्राणरहित होनेवाला जानना चाहिये । जिस रोगीकी दोनों तरफसे ठोढीकी नाडे फडकनेलगें और ठोडी हिलनेलगे उस रोगीको भी गतायु जानना चाहिये जिस रोगीके दांत अधिक मैले विखरेहुए और सफेद शर्करायुक्त हों उसको भी शीघ्र मृत्युग्रस्त होनेवाला जानना चाहिये। जिस रोगीकीपलकें जटाके समान वधजायँ वह भी गतायु होता है । जिस रोगीके नेत्र अपने स्वभावसे हीन होकर विकृत होजायँ अत्यंत बाहर निकल आयें अथवा अधिक भीतरकों बढजायँ या टेढे होजायँ या एक वडा एक छोटा होजाय अथवा एक बंद होजाय एक खुला रहे एवम् अत्यंत पानी बहना, बहुत ही शिथिल होजाना बिलकुल बंद होजाना या खुलेही रहना या थोडी २ देरमें खुलना या बंद होवें अथवा फटेसे होजायँ या भयानक शतिसे देखे या दृष्टिहीन होजायँ या अपूर्वदृष्टि होजायँ, दिनमें सव वस्तुएं साधारण देखना अथवा सव वस्तुयें काली देखना अंगारके समान काले, नीले, पीले, श्याम, ताम्रवर्ण, हरे, हल्दी के रंगके या सफेद इन सब वणॉर्मेंसे अत्यन्त विकृत होकर किसी वर्णका होना यह सब लक्षण गतायु मनुष्यके हैं ।। ६ ।।
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