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शारीरस्थान- म०...... (७६१) नांभूतौकानन्ताकाश्मर्यापरूषकमधुकमृद्धीकानाञ्चपयसाझे‘दकेनोमय्यरसंप्रियालविभीतकमज्जातिलकल्कसम्प्रयुक्तमी
पल्लवणमनस्युष्णनिरूहंदद्यात् ॥ ६१ ॥ .. ऐसे समयमें वीरणतृण, शाल, और षष्टिक चावल, कुशा, कांस,इक्षुबालिका,, वेवस,ब्यूस इन सबकी जड लेकर अथवा अजवायन,सारिवा, कुम्हार वृक्ष,फालसा मुलहठी,मुनक्का इन सवको बरावरके जलयुक्त दूधमें पकावे फिर उस दूधमें चिरौंजी, बहेडेकी मजा, तिलोंका करक और बहुत थोडा सेंधानमक मिला इससे निरूहणः बस्ति देवे ॥६१॥
व्यपगतविबन्धाश्चैनांसुखसालिलपारषिक्तांगीस्थैर्यकरमविदाहिनमाहारंभुक्तवतींसायमधुरकसिद्धेनतैलेनानुवासयेन्न्युब्जान्वेनामास्थापनानुवासनाभ्यामुपचरेत् ॥ १२ ॥ जब विवध खुलजाय तो उस गर्भवती स्त्रीको सुखोष्ण गर्म जलसे परिसेचन कर शान्तिदायक तथा अविदाही आहारको देवे । और सायंकालके समय मधुरगणसे सिद्ध कियेहुए तैलद्वारा अनुवासन कर्म करे । लथा उस गर्भवतीको जब अनुवासन
और आस्थापन करे तो औंधे (मूधे) लेटाकर करे। क्योंकि अन्य पुरुषों के समान सीधी लेटाकर आस्थापनकर्म करनेसे गर्भ हिलजाताहै ॥ ६२ ॥
- मृतगर्भका लक्षण । यस्याःपुनरतिमात्रदोषोपचयाद्वातीक्ष्णोष्णातिमात्रसेवनाद्वातमूत्रपुरीषवेगधारणैर्वाविषमाशनशयनस्थानसंपीडनैाक्रोधशोकेासूयाभयत्रासादिभिर्वापरैः कर्मभिरन्तःकुक्षौग नियते । तस्या:स्तिमितस्तब्धमुदरमाततंतिमश्मान्तर्गतमिवभवत्यस्पन्दनोगर्भः शूलमधिकमुपजायतेनचाव्यःप्रादुर्भव. न्तियोनिनप्रस्रवत्यक्षिणीचास्या:सस्तेभवतः तास्यतिव्यथते भ्रमतेश्वसित्यरतिबहुलाचभवतिनवास्यावेगप्रादुर्भावावायथावदुपलायतेइत्येवंलक्षणांस्त्रियमृतगर्भेयमितिविद्यात् ॥६३ ॥ . गर्भवतीके शरीरमें दो का अत्यन्त सञ्चय हानेसे अथवा अत्यन्त तीक्ष्ण और गरम व्योंके सेवनसे तथा अधोवात और मलमूत्रके आये वेगोंको रोकनेसे एवम् विषम सीतपर भोजन, शयन और उठने बैंठमे आदिसे ऊंचे नीचे पांव रखनेसे या