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चरकसंहिता-मा० टी०।
रक्षाविधि। ' अथास्यरक्षांविदध्यादादानीखदिरकर्कन्धूपीलुपरूषकशाखाभरस्यागृहभिषक्लमन्ततःपरिवारयेत्।सर्वतश्चसूतिकागारस्यसर्षपातसातण्डुलकणिकाःप्रकिरेत्।तथातण्डुलवलिमङ्गलहामःसततमुभयकालंक्रियतेप्राङ्नामकर्मणोरचमुसलमनुतिरश्चीनंन्यस्तंकुर्यात् ।वचाकुष्टक्षोमकहिंगुसर्षपातसीलशुनकणकणिकानां रक्षोनसमाख्यातानाञ्चऔषधीनांपोहलिकांबद्धासूतिकागारस्यो 'त्तरदेहल्यामासजेतातथासूतिकाया कण्ठेसपुत्रायाःस्थाल्युदककुम्भपर्यङ्केष्वपितथैवचद्वयोरपक्षयोःसकणकुम्भकेन्धनाग्निस्तिन्दुककाष्ठेन्धनश्चाग्निःसूतिकागारस्याभ्यन्तरतोनित्यस्यात् । स्त्रियश्चैनांयथोक्तगणाःसुहृदश्चानुजागयर्दशाहद्वादशाहवानुपरतप्रदानमङ्गलाशीःस्तुतिगीतवादित्रमन्नपानविशदमनुरक्तप्रहृष्टजन
सम्पूर्णतद्वेश्मकार्यम्। ब्राह्मणश्चाथर्ववेदवित्सततमुभयकालेशा“न्तिजहुयात्स्वस्त्ययनार्थसुकुमारस्यतथासूतिकायाइत्येतद्रक्षावि
धानमुक्तम् ॥ १०१॥ इसके उपरान्त इस बालककी रक्षा करे।उस रक्षाविधिका वर्णन करते हैं।जैसेआदानी (घोषक) खैर, वेर पीलू,फालसा इन सब वृक्षोंकी शाखाओंको घरके चारों ओर लटका देवे।और उस प्रसूत घरमें सफेद सरसों,अलसी और चावलोंके दाने बखेरदेवे । प्रातःकाल और सायंकाल दोनों समय चावलोंका बलिदान और मंगलकर्म, हवन, आदि नित्यम्प्रति करना चाहिये। तथा नामकरण संस्कार होनेसे प्रथम द्वारमें एक लोहेका मूसल टेढाकर रखदेना चाहिये। और वच, कूट, अजवायन, हींग, सफेद सरसों, अलसी, लहसुन,चावल इनसवकी पोटली वांधकर तथा भूतादिनाशकऔषधियोंकी पोटली बांधकर प्रसूतघरके उत्तरके द्वारकी देहलीपर रख देना चाहिये। या चौकटमें बांधकर लटका देना चाहिये।इसीप्रकार इन भूतनाशक व्याकी छोटीपोटली बना प्रसूता स्त्री और वालकके गलेसे वांधदेना चाहियाएवं प्रसूताके भोजनकरनेके पात्र में और जल पनि घटमें तथा चारपाईमें और दोनों ओरके किवांडोंमें भी बांधना चाहिये । इस प्रसूताके घरमें सरसों आदिके कणके, चावल, जलका घडा, लकडियें, अग्नि, तेंदुकी लकडीसे प्रज्वलित हुई अग्नि सदेव