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(८०४) चरकसंहिता-भा० टी।
क्षीरदोषविशेषांश्चावेक्ष्यावश्यतत्तद्विधानकायस्यात् ॥११५॥ क्षीर (दूध) के दोषोंको विशेषरूपसे विचारकर और उनमें वाताद दोषोंकी पृथकू २ परीक्षा कर चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ११५ ॥
मुग्धशोधक उपाय । पांठांमहौषध-सुरदारु-मुस्तमूर्वागुडूची--वत्सकफल-किराततितकटुरोहिणीशारिवाकषायाणाञ्चपानंप्रशस्यते । तथान्येषांतिक्तकषायकटुमधुराणांद्रयाणांप्रयोगः । इतिक्षीरशोधनान्यु. तानिभवन्ति । क्षीरविकारविशेषानभिसमीक्ष्यमात्राकालञ्चेति क्षीरविशोधनानि ॥ ११६ ॥ धात्रीके दूधको शुद्ध करनेके लिये पाठा,सोंठ,देवदारु,नागरमोथा,मूर्वा,गिलोय, इन्द्रयव, चिरायता, कुटकी और सारिवाका काथ बना पिलाना चाहिये । तथा दोषोंके अनुसार विचारपूर्वक कडवे, कसैले, चरपरे तथा मधुर द्रव्योंका प्रयोग करना चाहिये । इसप्रकार क्षीरके शोधने के उपाय कहेगये। और क्षीरके विकारोंको पृथक पृथक् विचार कर मात्रा तथा कालका ध्यान रखकर उचित रातिसे उचित द्रव्योंद्वारा शोधन करना चाहिये यह दूधशोधनकी विधि कहीगई ॥ ११६ ॥
दुग्धोत्पादकविधि । क्षीरजननानितुमानिसीधुवानिग्राम्यानूपौदकानिचशाकधान्य. मांसानिद्रवमधुराम्लभूयिष्ठाश्चाहाराःक्षीरिण्यश्चौषधयः क्षीरपानञ्चानायासश्चेतिवारणषष्टिशालिकेक्षुबालिकादर्भकुशकाशगुन्द्रोकंटमूलकषायाणाञ्चपानमितिक्षीरजननान्युक्तानि ॥ ११७॥ स्तन्य अर्थात् स्तनों में दूध बढानेवाले यह द्रव्य हैं । जैसे शीधुमद्यके सिवाय अन्य सब प्रकारके मद्य,ग्राम्य और अनूप तथा जलमें होनेवाले शाक धान्य और मांस, पतले पदार्थ,मधुरऔर खटमीठे द्रव्य,गुल्लड आदि क्षीरीगण,दूधका पीना, परिश्रम न करना,वीरणतृण,साठीचावल,इक्षुबालिका दर्भ,कुशा,काश,गुन्द्रपटेर और . उत्कट इन सबकी जडोंका काथ बना मिसरी मिला पीना स्तनोंमें दूधको बढाताहै ॥ ११७ ॥ . :
शुद्धदूधवालीका कर्त्तव्य कर्म । धात्रीतुयदास्वादुबहुलशुखदुग्धास्यात्तदानातानुलिप्ताशुक्लवस्त्रंप.... रिचायेन्द्रींबाहीशतवीय्यांसहस्रवय्यिामाघासव्यथांशिवामरि