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१८०६) चरकसहिता-मा० टी०। नरम, पवित्र और सुगंधित होने चाहिये । उनमें पसीना, मल, मूत्र, जीव, विष्ठा आदि किसीसमय भी न रहना चाहिये ॥ १२० ॥
असतिसम्भवेऽन्येषांतान्येवचसुप्रक्षालितोपधानानिसुधूपितानि. सुशुद्धशुष्काण्युपयोगंगच्छेयुः ॥ १२१॥ यदि बारबार नय और स्वच्छ वस्त्र प्राप्त न करसकें तो उन्हीं वस्त्रोंको उत्तम गीतसे धोकर स्वच्छ करे और अच्छीतरह सुखा शुद्ध सूखे होनेपर सुगंधित धूप आदि दे उन्हींका वर्ताव करे । अर्थात् पहिले बदल दिया करे और दूसरे धुलेहु: ओंको उपयोग किया करे ॥ १२१ ॥
वस्त्रोंमें धूप देनेवाली औषधी । धूपनानिपुनलिसांशयनास्तरणप्रावरणानाञ्चयवसर्षपातसीहि गु-गुग्गुलु-वचाचोरकवय-स्थागोलोमीजटिला-पलङ्कषाशोक--
रोहिणीसपनिमोंकाणितेसपृक्तानिस्युः ॥ १२२ ॥ 'धूपनद्रव्य अर्थात् बालकोंके वस्त्रोंको धुनी देनेके यह द्रव्य हैं । जैसे यब, सरसों, अलसी, हींग, गूगल, वच, गठविन, हरड, बालछड, जटामांसी, लाख, अशोक, कुटकी और सांपकी कांचुली इनसबके बारीक चूर्णको घृतमें मिला वालकके वस्त्र, शय्या आदि सबको धुनी देनीचाहिये ॥ १२२ ॥
कुमारकी अन्यरक्षा विधि।। मणयश्चधारणीयाःकुमारस्यखड्गरुरुगवयवृषभाणांजवितामेवदः । क्षिणेभ्योविषाणेभ्योऽग्राणिगृहीतान्निस्युः। मन्त्रायाश्चौषधयोजीवकर्षभकोचयान्यपिअन्यानिब्राह्मणाःप्रशंसयुः ॥ १२३॥ . . इस बालकको मणि धारण कराना चाहिये । और गैंडा, रु, गज, अथवा रोझ या वृषभ इन जीतेहुओं में से किसीका दहिनी सींगका अग्रभाग या इनसबकेही दहिनी सींगका अग्रभाग और मंत्रादिकोंसे अभिमंत्रित औषधिये, जीवक, ऋष.. भक, अन्य वच, सीप आदि जिन द्रव्योंको ब्राह्मण अच्छा कहतेहों वह सब इस बालकको धारण कराना चाहिये ॥ १२३ ॥
बालकके खिलौने। क्रीडनक्रानिखल्वस्यतुविचित्राणिघोषवन्त्यभिरामाणिअगुरूण्यती. क्ष्णाग्राणिअनास्यप्रवेशीनिअप्राणहराणिअवित्रासिनानिस्युः १२४॥ इस बालकके खेलने के लिये चित्र विचित्र शब्द करनेवाले अर्थात् बजनेवाले