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८१६) . चरकसंहिता-मा० टी०। अनेक प्रकारकी रेखा आदि विचित्ररूपसे प्रगट होजायँ तो उसके · मरणख्यापक लक्षण जानना ॥ २२॥
पुष्पाणिनखदन्तेषुपङ्कोवादन्तसंस्थितः।
चर्णकोवापिदन्तेषुलक्षणंमरणस्यतत् ॥ २३॥ जिस रोगीके नख और दांतोंपर रंगविरंगे फूलसे पडजाय अथवा दांतोपर बहुतगाढी मैल जमजाय एवं दांतोंमें चूर्णसा लगा हुआ प्रतीत हो तो उस रोगीके मर णके लक्षण जानना ॥ २३ ॥
ओष्ठयोः पादयोः पाण्योरक्ष्णोर्मूत्रपुरीषयोः।
नखेष्वपिचवैवर्ण्यमेतत्क्षीणवलेऽन्तकृत् ॥ २४ ॥ जिस रोगीके दोनों, होठ दोनों पा , हाथ, नेत्र, मूत्र, पुरीष और नख इन , सबमें एकाएकी विवर्णता उत्पन्न होजाय और वह रोगी क्षीणवल हो तो उसकी'; मृत्युके लक्षण जानना ॥ २४॥
यस्यनीलावुभावोष्ठौपक्जाम्बवसान्निभो।।
मुमधुरितितंविद्यान्नरोधीरोगतायुषम् ॥ २५॥ जिस रोगीके दोनों होठ नीले या पकीहुई जामुनके समान होजायँ तो उस रोगीको बुद्धिमान मनुष्य गतायु जाने ॥ २५॥
एकोवायदिवानेकोयस्यवैकारिकःस्वरः।
सहसोत्पद्यतेजन्तोहीयमानस्यनास्तिसः ॥ २६ ॥ जिस रोगीका एकाएकी स्वर बदल जाय अथवा अनेक प्रकारका वैकारिक होजाय उस नष्ट आयु रोगीको नहीं है ऐसा जानना ॥ २६ ॥
यच्चान्यदपिकिञ्चित्स्याद्वैरुतस्वरवर्णयोः ।
बलमांसविहीनस्यतत्सर्वमरणोदयम् ॥ २७ ॥ बल और मांसहीन रोगीके स्वर और वर्णमें अन्य किसीप्रकारकी विकृति होना भी उसके मरणका चित्र जानना ॥ २७ ॥
इतिवर्णस्वरावुक्तौलक्षणाथमुमूर्षताम् ।
यस्तुसम्यग्विजानातिनायुनेसमुह्यति ॥ २८ ॥ इति चरकसंहितायामिन्द्रियस्थाने वर्णस्वरीयमिंद्रियम् ॥ १॥