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इन्द्रियस्थान - अ०.२...
एवमेकैकशःपुष्पैर्यस्यगन्धःसमोभवेत्। इष्टैर्वायदिवानिष्ठैःसच पुष्पितउच्यते ॥ ८ ॥ समासेनाशुभान्गन्धानेकत्वेनाथवा पुमान् । आजिघेद्यस्य गात्रेषुतंविद्यात्पुष्पितभिषक् ॥ ९ ॥ आप्लुतानाप्लुतेकायेयस्यगन्धाः शुभाशुभाः । व्यत्यासेनानिमित्ताः स्युःस चपुष्पितउच्यते ॥ १० ॥
जिस मनुष्य के शरीरमें किसी एकएक फूलकी गंध आतीहो वह गंध सुगंधिव अथवा दुर्गंधित हो परन्तु उसको पुष्पित कहते हैं । अथवा जिस मनुष्यकें शरीर में एक अथवा अनेक प्रकारकी अशुभ गंध आतीहो उसको भी - वद्य पुष्पित जाने | अथवा जिस मनुष्यके स्नान न करनेपर अथवा स्नान करने पर भी बिनाही कारण व्यशुभगंध आतीहो उसको भी पुष्पित कहते हैं ॥ ८ ॥ ९ ॥ १० ॥ तद्यथा चन्दनंकुष्ठंतगरागुरुणीमधु । माल्यंमूत्रपुरीषेवामृतानि कुणपानिवा ॥ ११ ॥ येचान्येविविधात्मानो गन्धाविविधयोनयः । तेऽप्यनेनानुमानेनविज्ञेयाविकृतिं गताः ॥ १२ ॥ इदञ्चीप्यतिदेशार्थंलक्षण गन्धसंश्रयम् । वक्ष्यामोयदभिज्ञायभिषड्- ' मरणमादिशेत् ॥ १३ ॥
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जिसके शरीर में चंदन, कूट, तगर, अगर, शहद, माला, मूत्र, मल और मुर्देकीसी - तथा अनेक प्रकारको अनेक कारणोंवाली गंधे आतीहों वह मनुष्य भी विकृतिको प्राप्तहुआ जानलेना चाहिये । इसप्रकार अनुमान द्वारा गंधज्ञानसे मरणके लक्षण जानने के लिये यह निर्देश किया गया है और भी गंधाश्रित लक्षणोंको कथन करते हैं जिनको जानकर वैद्य मनुष्य के मृत्युका कथन कर सकताहै ॥ ११ ॥ १२ ॥ १३ ॥ गंधका ज्ञान ।
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वियोनिर्विदुरोयस्यगन्धा गात्रेषुदृश्यते ।
इष्टोवायदिवानिष्टोनस जीवतितांसमाम् ॥ १४ ॥
जिस मनुष्यकी देहमें विनाही कारण पशु पक्षियोंकीती सुगंधि अथवा दुर्गंधि आनेलगे वह मनुष्य उसीवर्ष में मृत्युको प्राप्त होजाता है ॥ १४ ॥ एतावद्गन्धविज्ञानं रसज्ञानमतः परम् ।
आतुराणां शरीरेषु वक्ष्यामो विधिपूर्वकम् ॥ १५ ॥