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६ ८१२) चरकसंहिता-भा० टी०। लक्षण होतेहैं उनके विकृत होजानेसे वह विकृतिके निमित्त मानेजातेहैं उनको लक्षणनिमित्ता विकृति कहतेहैं क्योंकि कोई २ लक्षणही इसप्रकार शरीरसे बेघहुए हैं समय समयपर प्रगट होकर जिस २ समयमें जिस २ प्रकारसे शरीरमें वह लक्षण होतेहैं उस उस प्रकारकी विकृति (विकार ) को उत्पन्न करतेहैं ॥ ४ ॥ लक्ष्यनिमित्तालुलायस्याउपलभ्यतेनिमित्तंयथोक्तंनिदानेषु ॥५॥
रोगका निदान कथन करनेके समय लक्ष्यनिमित्ता विकृतिका कथन करचुके अर्थात् रोगोंके निमित्तरूप वातादिकोंकी विकृतिको लक्ष्यनिमित्ता विकृति कहतेहैं ॥५॥
निमित्तानुरूपाके लक्षण । निमित्तानुरूपातुनिमित्तार्थानुकारिणीयातामनिमित्तांनिमित्तमायुपाप्रमाणज्ञानस्येच्छन्तिभिषजोभूयश्चायुषःक्षयनिमित्तांप्रेतलिङ्गानुरूपायालायुषोऽन्तर्गतस्यज्ञानार्थमुपदिशन्तिधीराः ॥६॥
निमित्तकी अर्थानुरूपा विकृतिको निमित्तानुरूपा विकृति कहतेहैं अर्थात् विनाही कारणके स्वभावादिकोंमें विकृति होजाना निमित्तानुरूपा विकृति कही. जातीहै । इसी विकृतिको वैद्यलोग अनिमित्त होनेसे आयुकी परीक्षाका निमित्त मानते हैं । बुद्धिमान् इसी विकृतिको आयुके क्षयका निमित्त और प्रेतत्वका चिह्न, मानतेहै । तथा गतायु मनुष्यको आयुनाशके ज्ञानके लिये इसी विकृतिको क्रथन करतेहैं ॥ ६॥
यामधिकृत्यपुरुषसंश्रयाणिमुमूर्षतांलक्षणानिउपदेक्ष्यामः। - इत्युदेशः । तद्विस्तरेणानुव्याख्यास्यामः ॥ ७ ॥
इस विकृतिके आश्रयसेही मरनेवाले पुरुषके लक्षणोंका उपदेश करेंगे । यह उद्देश है । पुरुषके जिन लक्षणोंको देखकर उसके मरनका ज्ञान होसकता है उन्हीं विकृति आदिकोंको विशेषरूपसे वर्णन करते हैं ॥ ७ ॥
प्रकृतिवर्ण । "- तत्रादितएववर्णाधिकारस्तद्यथाकृष्णःकृष्णश्यामःश्यामावदातोवदातश्चइतिप्रकृतिवर्णाःशरीरस्यं ॥
..., : उनमें पहिले वर्णकी प्रकृति और विकृतिका वर्णन करते हैं । जैसे-कृष्णवर्ण,- . कृष्ण श्यामवर्ण, श्याम गौरवर्ण और गौरवर्ण यह शरीरके प्रकृतिवर्ण अर्थात् स्वाभाविक वर्ण होतेहैं ॥ ८ ॥
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