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(८०२) चरकसंहिता-मा० टी०।
इसके अनन्तर एक मनुष्यको कहे कि धात्री(धाय)को लावो । वह धात्री अपर्ने समान वर्णकी हो,युवा हो, अयोग्य न हो, रोगरहित हो, सर्वांगसंपन्न हो, कुरूप
और कुचरित्र न हो,निंदनीय न हो, अपने देशकी हो, नीच न हो, उत्तम स्वभाव व कर्मवाली हो,अच्छे कुलकी हो,वालकको प्यार करनेवाली हो,जिसको अपने बच्चे जीते हों अर्थात मृतवत्सा न हो और लडकेवाली हो, जिसके स्तनों में बहुतसा दूध हो, असावधान न हो, बहुत सोनेवाली न हो तथा विना कहे कहीं एकान्तमें सोनेवाली न हो, जातिसे पतित न हो, चतुर उपचार करनेवाली हो, पवित्र हो,अप; वित्रतासे द्वेष रखतीहो, जिसका दूध उत्तम हो ऐसे गुणोंवाली धात्री उत्तम हो. बीहे. ॥ १०७.॥
उत्तम स्तनके लक्षण । नत्रेयंस्तनसम्पन्नात्यूछौनातिलम्बौअनतिकशौअनतिपीनीयुक्तपिप्पलकोसुखप्रपानौचेतिस्तनलम्पत् ॥ १०८ ॥ स्तनों? यह लक्षण उत्तम होतेहैं। अर्थात् धायके स्तन ऐसे होने चाहिये । मधिक ऊँचे, अधिक लम्बे, अधिक कृश और अधिक मोटे न हों । अनुरूप लक्षणवाले खूबसूरत पीपल के पत्ते के समान पीछेसे चौडे और आगेसे नोंकीले जिनमेंसे बालक सूखपूर्वक दूध पी सके ऐसे उत्तम होतेहैं ॥ १०८ ॥
उत्तमदूधके लक्षण ।। स्तन्यसम्पत्तुप्रकृतिवर्णगन्धरसस्पर्शसुदपानेचदुह्यमानंदुग्धमुदकं वेतिप्रकृतिभतत्वात्तत्पुष्टिकरमारोग्यकरञ्चेतिस्तन्यसम्पदतोऽन्यथाव्यापन्नंज्ञेयम् ॥ १०९ ॥
अब दूधके लक्षणोंका वर्णन करतेहैं । स्तनोंका दूध वर्ण, गंध, रस और स्पर्शमें स्वाभाविक गुणोंवाला होना चाहिये । स्वाभाविक गुणके ये लक्षण हैं कि जो दूध जलके पात्रमें डालनेसे जलके साथही मिलजाय वही दूध पुष्टिकारक, आरोग्य रख. नेवाला तथा उत्तम होताहै । इन लक्षणोसे विपरीत लक्षणावाला दूध दूषित जा. जना ॥ १०९॥
वातदूषित दूध । तस्यविशेषाःश्यावारुणवर्णकषायानुरसंविशदमनातलक्ष्यगन्धं रूक्षंद्रवंफेनिलंलघुअतृतिकरंकर्षणंवातविकाराणांकर्तवात टक्षीरमभिज्ञेयम् ॥ ११० ॥