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शारीरस्थान-य०.८. (८०१) लम्बी, चिकनी, पतली, सुडौल, गुलाबी रंगकी और अपने गुणोंसे संपन्न उत्तमा, होतीहै । तालु मसूण, पुष्ट, ऊंचा, तथा, लालवर्णका उत्तम होताहै । स्वर बडा, दीनता रहित, चिकना, प्रतिध्वनियुक्त, गंभीर तथा धीर उत्तम होता है । होठ न बहुत मोठे न अधिक पतले, विस्तारयुक्त, मुखको ढकेहुए और लालवर्णके उत्तम होते हैं । ठोडी गोल अधिक लम्बी न होना उत्तम होता है। गर्दन दृढ और थोडी लम्बी उत्तम होती है।दोनों कंधे, व्यूढ और दृढ तथा ऊंचे उत्तम होते हैं । इंसुली दृढ और छाती में मिली हुई उत्तम होता है। पीठका बांस मांसमें छिपाहुआ उत्तम होता है । स्तनोंके वीचका भाग फैलाहुआ चौडा अच्छा होता है ।दोनों पार्थ दोनों कंधोंकी और ढलेहुए और दृढ उत्तम होते हैं । दोनों बाहु, नितम्ब और अंगुलिये लम्बी, गोल, परिपूर्ण और दृढ होना उत्तम है। हाथ और परि-पुष्ट, दृढ, और लम्बे उत्तम होते हैं। नख चिकने, ताम्रवर्ण, ऊंचे कलएकी पीठके समान, सुडौल उत्तम होते हैं। नाभि-दक्षिणावर्त और वीचमेंसे गरी किनारसे ऊंची उत्तम होती है।नाभि और उरस्थलके बीच में चौथा भाग प्रमाणसे सुडौल
और पुष्ट कमर उत्तम होती है।दोनों नितम्ब गोल,दृढ मांससे पुष्ट न भति ऊंचे और न अधिक नांचे उत्तम होते हैं, दोनों उरुस्थल गोल, पुष्ट और मोटे उत्तम होते हैं। दोनों जानु गोल और पुष्ट उत्तम होती हैं दोनों जांघ-हिरणीके पैरके समान और पुष्ट छिपीहुई हड्डियोंवाली जिनमें कोई नाडी दिखाई न देताहो और उनकी संधिर्य: भी छिपाहों ऐसी उत्तम होती हैं।दोनों गुल्फ न बहु पुष्ट और न अधिक कृश उत्तम होते हैं। दोनों पांव पूर्वोक्त लक्षणवाले कछुएकी पीठक समान सुडौल उत्तम होतेहै इनके सिवाय वायु, मूत्र, मल, गुह्यावयव, निद्रा, जागरण आदि अन्य व्यवहार । तथा हास्य और रोदन तथा स्तनोंका पीना स्वाभाविक ठीक होने उत्तम होते है । यह लक्षण दीर्घायु कुमारके होते हैं इससे विपरीत लक्षण अल्पायु बालकोंके होते हैं। इसप्रकार दीर्घजीवी वालकोंके लक्षण कथन कियेगये ॥ १०५ ॥
धात्रीपरीक्षा। - अतोधात्रीपरीक्षामुपदेक्ष्यामः ॥ १०६ ॥
अव धात्रिकी परीक्षाका वर्णन करते हैं ॥ १०६ ॥ . अथव्यादात्रीमानयोतिसमानवणायौवनस्थांनिभृतामनातुरामव्यङ्गामव्यसनामविरूपामजुगुप्सितांदेशजातीयामक्षुद्रामक्षुद्रक मिणीकुलेजातांवत्सलामरोगजीवद्वत्तापूवत्सांदोग्धीमप्रमत्तामशायिनीमनुच्चारशायिनीमनंन्तावशायिनीकुशलोपंचारांशुचिमशुचिद्वेषिस्तिन्यसम्पदुपेतामिति ॥ १०७॥ .