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'शारीरस्थान-अ०८.
'(७९९) -सौंषधी तथा सर्वगंध, सफेद सरसों और पठानी लोध इनसबका कल्क शरीरमें लगा फिर उष्णजलसे स्नान करावे । तदनंतर स्वच्छ,हल्के और नये वस्त्रोंको धारण करकै मंगलद्रव्योंका स्पर्श करावे । और इष्टदेवताओंका पूजन करावे । फिर शिखासुत्र धारणकिये श्वेत वस्त्रोंवाले सर्वांगसंपन्न योग्य ब्राह्मणोंसे स्वस्तिवाचन करावे तथा उस बालकको निर्मल कोमल नवीन सफेद वस्त्र धारण करावे। फिर उस बालकको पूर्व अथवा उत्तरकी ओर मुख कर लेटादेवे । फिर उस बालकका पिता प्रथम देवता और ब्राह्मणोंको प्रणाम करके उस लडकेके नक्षत्रसंबंधी और अपना इच्छित दो नाम रक्खे । उनमें बोलनेका अर्थात् अपनी इच्छानुसार जो नाम रक्खा जाय उस नामके आदि और अन्वमें क्रमसे घोषवान् और अन्तस्थ अक्षर होने चाहिये। अथवा अन्तमें ऊष्मा अक्षर होना चाहिये । पुत्रका नाम रखते समय अपने पिता पितामह आदि तीन पीढीके नाम बचाकर और अपने गुरु
आदिका नाम बचा और कोई नाम रखना चाहिये । वह नाम भी वर्तमान समन्यका कल्पना किया न होना चाहिये किन्तु पुराने समयके देवता या ऋषियोंकासा नाम होना चाहिये । तथा नाक्षत्रिक अर्थात जन्म नक्षत्रके चरणगत अक्षरसे जो नाम रक्खाजाय वह दो अक्षरोंवाला अथवा चार अक्षरोंवाला होना चाहिये ॥ १०४ ॥ कृतेचनामकर्मणिकुमारंपरीक्षितुमुपकामेदायुषःप्रमाणज्ञानहतो।। तत्रेमानिआयुष्मताकुमाराणांलक्षणानिभवन्ति। तद्यथा-एकैकजामृदवोऽल्पा:स्निग्धाःसुबद्धमूला छष्णा केशा प्रशस्यते स्थिरा बहलात्वक्प्रत्याकृतिसुसम्पन्नमीषत्प्रमाणातिरिक्तमनुरूपमातपत्रोपमंशिरःप्रशस्यते । व्यूढदृढसमसुश्लिष्टशंखसन्ध्यर्द्धव्यञ्जनमुपचितंवलिनमर्दचन्द्राकृतिललाटंबहलौविपुलसमपीठौसमौनी-- चौवृद्धौपृष्ठतोऽवनतौसुश्लिष्टकर्णपुटकौमहाच्छिद्रौकोईषत्प्रल- : म्बिन्यावसङ्गतेसमेसंहतेमहत्याध्रुवौ । समेसमाहितदर्शनेव्य- . क्तभागविभागेबलवतितेजसोपपन्नेस्वाङ्गोपाङ्गचक्षुषी। ऋज्वीमहोच्छासावंशसम्पन्नषदवततामानासिकामहजुसुनिविष्टदन्तमास्यमायामविस्तरोपपन्नाश्लक्ष्णातन्वी प्रतियुक्तापाटलवर्णाजि ह्वा । श्लक्ष्णंयुक्तोपचयमूष्मोपपन्नंरक्ततालुमहानदीनःस्निग्धोऽ