Book Title: Charaka Samhita
Author(s): Ramprasad Vaidya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 861
________________ शारीरस्थान-अ.८ (८०३) दूषित दूधके ये लक्षण हैं। जो दूध काले या लालवर्णका हो कसैले रसयुक्त हो रजिसमेंसे कुछ २ गंध आतीहो, जो अत्यंत रूखा हो, चंचल तथा झागयुक्त हो, जिसके पीनेसे तृप्ति न होतीहो,बहुत हल्का हो, जिसके पानेसे बालक कृश होजाय तथा वायुके विकारोंको उत्पन्न करताहो वह वातदूषित दूध जानना ॥ ११० ॥ पित्तदूषित दूध। कृष्णनीलपीतताम्रावभासंतिक्ताम्लकटुकानुरसंकुणपरुधिरगंधि भृशोष्णंपित्तविकाराणांकर्तपिचोपसृष्टंक्षीरमाभिज्ञेयम् ॥१११॥ जो दूध कृष्ण तथा नीलवर्णका अथवा पीले या तांबेके वर्णका हो और उस दूधका कड्डआ, खट्टा, अथवा चरपरा अनुरस हो, मुर्देकीसी गंध आतीहो,अथवा रुधिरकीसी गंध हो और अत्यंत गरम हो एवम् पित्तके रोगोंको उत्पन्न करनेवाला हो उसको पित्तदूषित जानना ॥ १११ ॥ कफदूषित दूध । अत्यर्थशुक्लमतिमाधुर्योपपन्नलवणानुरसंघृततेलवसामज्जगंधि पिच्छिलतन्तुमदुदकपात्रेऽवसीदतिश्लेष्मावकाराणांकर्तृश्ले'मोपसृष्टंक्षीरलाभज्ञेयम् ॥ ११२ ॥ जो दूध अत्यन्त श्वेतवर्ण हो, अधिक मीठा हो, लवण अनुरसयुक्त हो,घृत,तैल, बसा,मज्जाकीसी गंधवाला हो,गाढा हो, तारयुक्त हो,जल में डालनेसे डूब जालाहो एवम् कफरोगोंको उत्पन्न करनेवाला हो उसको कफदूषित जानना ॥ ११२ ॥ तेषान्तुत्रयाणामपिक्षीरदोषाणांप्रकृतिविशेषमाभिसमीक्ष्ययथास्वं यथादोषञ्चवमनविरेचनास्थापनानुवासनानिविभज्य कृतानिप्रशमनायभवन्ति ॥ ११३ ॥ उन तीनों प्रकारके दूषिव दूधोंको शुद्ध करने के लिये धायको वमन, विरेचन और आस्थापन तथा अनुवासन कर्म यथायोग्य रीतिपर दोषानुसार विभागपूर्वक करना चाहिये ॥ १३ ॥ धात्रीके खानेपीनेकी विधि । पानाशनविधिस्तुदुष्टक्षीरायायवगोधूमशालिषष्टिकमुद्गहरेणुककु. उत्थासुरासौवीरकतुषोदकसैरेयमेदकलशुनकरअप्रायःस्यात्॥११४॥ उस दूषित दूधबाली धायको खानेपीनेके लिये प्राय: यव,गेहूं,उत्तम शालिचा. वल, साठीचावल,मूंग, हरणु, कुल्थी, सुरा, सावौर,मैरेय, तुपोदक, मेदक, लहसुन और करंज आदि द्रव्योंको देना चाहिये ॥ ११४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939