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(९४) चरकसहिवा-भान्टी। उत्पन्न हुई मूछो दूर होकर बालकके प्राण प्रफुल्लित हों अर्थात् शरीरमें फिर भाजांय. फिर एक काले बडे शरावसे अथवा छाजसे इस बालकको धीरे २ हवा करे तथा बालककी मूर्छा दूर करने के लिये और उनके शरीरमें प्राणोंका आगमन होनेके लिये जो २ उपाय उचित हों करने चाहिये ॥ ९४ ॥
ततःप्रत्यागतप्राणप्रतिभूतमभिसमाक्ष्यस्नानोदकग्रहणाभ्या
मुपपादयेत्।अथास्यताल्वोष्ठकण्ठजिह्वांप्रमार्जनमारभेतअंगु, ल्यामुपरिलिखितनखयासुप्रक्षालितोपधानकार्पासपिचुमत्या
प्रथमंप्रमाजितस्यास्यचशिरस्तालकासिपिचुनास्नेहगर्भणप्र. तिच्छादयेत् । ततोऽस्यानन्तरंकायंसैन्धवोपहितेनसर्पिषा प्रच्छर्दनम् ॥ ९५॥ जब वालक होशमें आकर रोनेलगे और स्वस्थवृत्ति होजाय फिर उसको स्नान करावे तथा हाथ आदिसे स्वच्छ करे। उसके उपरान्त कोई स्त्री हाथकी अंगुलीको साफकरके उस अंगुलीका नख उत्तमतासें कटाहोना चाहिये फिर उस अंगुलीपर उत्तम साफ धुनीहुई रुईके फोहेको लपेट उस बालकके तालू, होंठ और कण्ठको. साफ करे । फिर रुईके फोहेको तैलमें भिगोकर बालकके तालुवेपर रक्खे। फिर इसके उपरान्त सेंधानमक और घीसे बालकको वमन करावे ॥ ९५ ॥
___ नालुवाछेदन विधि। नाड्यास्तस्या:कल्पनविधिमुपदेक्ष्यामः । नाभिवन्धनात्प्रभृतिहित्वाष्टांगुलमभिज्ञानंकृत्वाछेदनावकाशस्यद्वयोरन्तरयोः शनैर्गृहीत्वातीक्ष्णेनरोक्मराजतायसानांछेदनानामन्यतमेनोर्द्धधारणछेदयेत्तामसूत्रेणोपनिबध्यकण्ठेचास्यशिथिलमवसृजेत् ॥ ९६ ॥ अब बालककी नाल काटनेकी विधि कथन करतेहैं । नाभिसे आठ अंगुल लम्बी छोडकर जिस स्थानपरसे काटनी हो उसके दोनों ओर ऊपर और नीचेसे धागेके. साथ बांधदेना चाहिये । फिर उन दोनों बंधनोंके वीचमेंसे सोना,चांदी अथवा लोहेकी तीक्ष्ण (पैनी) धारवाली छुरीसे नालको काटदेना चाहिये। फिर ज़ो. नाल नाभिसे आठ अंगुल लगीहुई है उसको सूतके डोरेसे बांधकर वालकके गलेमें इसप्रकार ढीली बांधदेनी चाहिये जिससे वह खिंचे नहीं और डोरा भी ऐसी युक्तिसे
इसके उपरान्ता के काकोडेको लपेटा कटाहोना चाक