________________
शारीरस्थान-अ०८.. (७५३) ऊपर जरजरी वना वल्वज आदि क्वाथमें दो घडी भिगो रक्खे फिर वह क्वाथ छानकर इस प्रमूतास्त्रीको पिलाना चाहिये ॥ ९१ ॥
शतपुष्पाकुष्ठमदनहिंगुसिद्धस्यचैनांतैलस्यपिचुंग्राहयेदतश्चैवानुवासयेदेतेरेवचाप्लावनैःफलजीमूतकेक्ष्वाकुधामार्गवकुटजकतवेधनहस्तिपर्युपहितरास्थापयेत् ॥ ९२ ॥ फिर सौंफ, कूट, मैनफल, हींग इनसे सिद्धकिया तिलोंके तैलका फोहा प्रमूताकी योनिमें रक्खे । इसके उपरांत भैनफल, नागरमोथा, कडुवी तुंबी, कुडा, कडवी तोरी और हस्तिपणी इन सबके कल्कको उपरोक्त वल्वज आदिके क्वाथमें मिला आस्थापन वस्ति करे ॥ ९२ ॥
तदास्थापनमस्याहिसहवातमूत्रपुरीनिहरत्यमरामासक्तांचायोरनुलोमगमनात् । अमरांहिवातमूत्रभपुरीषाण्यन्यानिचान्तबहिर्मुखानिसृजन्ति ॥ ९३॥ उस आस्थापन वस्तिके करनेमे वायु अनुलोम होकर वात, मूत्र और मल साफ निकलतेहैं और साथही अमरा भी निकल जाती है। क्योंकि वात, मूत्र, पुरीष तथा अन्य भी सब अमराके साथही खिंचहुए होनेसे अन्तर्मुख और बहिर्मुख होतेहैं । आस्थापन द्वारा पुरीष आदिकोंके गहमुख होनेसे अमरा (आंवल ) भी बाहर निकल आतीहै ॥ ९३ ॥
. कुमारके कर्म । तस्यान्तुखल्वमरायाःप्रपतनार्थेखल्वेवमेवकमणिक्रियमाणे जातमात्रेऽस्यैवकुमारस्यकााण्येतानिकर्माणिभवन्तितद्यथा-अश्मनोःसंघनकर्णयोर्मूलशीतोदकेनोष्णोदकेनवासुखपरिषेकः । तथासंक्लेशविहतान्प्राणान्पुनर्लभेतकृष्णकपालिकाशूर्पणचैनमभिनिष्पुष्णीयाद्यच्चेष्टस्याद्यावत्प्राणानांप्रत्यागमनात्तत्तत्सर्व मेवकुय्युः ॥ ९४ ॥ यह सब कर्म तो अमरा (आंवल) गिराने के लिये किये जातेहैं । अव वालकके संबंधमें जो कर्म करने चाहिये उनको वर्णन करतेहैं । जैसे-जब वालक उत्पन्न. हो तो उस बालकके कानके समीप दो पत्थरोंको बजाना और शीतल अथवा गरम जलसे धीरेधीरे मुखको धोना और मुखपर छींटे देना जिससे प्रसवसमयके कष्टसे