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शारीरस्थान-अ०८.
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और नरम बांधना चाहिये कि जिससे उस बालकके नरम शरीरमें कहीं अपना असर न दिखावे ॥ ९६॥
नाभिपाकका यल। तस्यचेन्नाभिःपच्येत्तालोध्रमधुकप्रियंगुदारुहरिद्राकल्कसिद्देन तैलेनाभ्यज्यादेषामेवतैलौषधानांचूर्णेनावचूर्णयेदेषनाडौंकल्पनविधिरुक्तःसम्यक् ॥ ९७॥ यदि बालककी नाभि पकजाय तो पठानी लोध, मुलहठी, प्रियंगु, हल्दी और दारुहल्दी इनके कल्क द्वारा सिद्ध कियाहुआ तैल उस नाभिपर लगाना चाहिये अथवा इन उपरोक्त औषधियोंके बारीक चूर्णको तैलमें मिलाकर नाभिपर लगादेना चाहिये इसप्रकार नालवाकल्पनविधि कथन की गई है ॥ ९७ ॥ । असम्यकल्पेनहिनाडयाआयामव्यायामोत्तुण्डितपिण्डालिकावि
नामिकाविजृम्भिकाबाधेभ्योभयम्॥९८॥तत्राविदाहिभिर्वात. पित्तप्रशमनैरभ्यङ्गोत्सादनपरिषकैः सपिर्भिश्चोपक्रमेतगुरुलाघवमभिसमीक्ष्यकुमारस्य ॥ ९९॥ याद नालवेका उत्तमप्रकारसे छेदन न कियाजायगा तो उस बालकको आया, मक, व्यायाम उत्तुण्डिका,पिण्डालिका,विमानिका और विजृम्भिका नामक व्या धियोंके उस नाभीमें उत्पन्न होनेका भय है ॥ ९८ ॥ इनके उत्पन्न होनेपर इन व्याधियोंकी लघुता, गुरुता आदि देखकर अविदाही वातपिचनाशक, उत्सादन
और परिषेकों द्वारा तथा सिद्ध घृत द्वारा चिकित्सा करना चाहिये।(इसकी विशेष चिकित्सा चिकित्सास्थान १२ वें अध्यायमें देखना ॥ ९९ ॥
जातकर्मविधि। . . प्रागतोजातकर्मकार्यततोमधुसर्पिषीमन्त्रोपमन्त्रितेयथान्यायं प्राशितुमस्मैदद्यात् । स्तनमतऊर्द्धमनेनैवविधिनादक्षिणंपातुपुं. रस्तात्प्रयच्छेत् । अथातःशीर्षतःस्थापयेदुदकुम्भंमन्त्रोपमन्त्रितम् ॥१०॥
प्रथम बालकका जातकर्म करना चाहिये । वेदोक्त मन्त्रोंद्वारा मंत्रित कियाहुआ घृत और मधु विषमभाग मिलाकर बालकंको चटानाचाहियोइसके उपरान्त इसी विधिसे पहिले दाहिना स्तन पनिके लिये देना चाहिये । फिर उसके सिरके समीप मंत्रोंसे मन्त्रित किया जलका कलश रखना चाहिये ॥ १०० ॥