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(७१२) . चरकसंहिता-भा० टी०।
.. प्रसवके उपरांत कर्म। . यदाचप्रजातास्यात्तदैनामवेक्षेतकाचिदस्याअमराप्रपन्नावाप्र. पन्नानेति । तस्याश्चेदमरानप्रपन्नास्यादथैनामन्यतमात्रीदक्षिणेनपाणिनानाभेरुपरिष्टाइलवन्त्रिपडियसव्येनपाणिनापृष्ठतउपसंगृह्यसुनिघूतंनिधूंनुयात् । अथास्याःपादपायाश्रोणीमाकोटयेदस्याःस्फिचावुपसंगृह्यसुपीडितंपडियेत् । अथास्या बालवण्याकण्ठतालूपरिमृशेत् ॥ ८९ ॥ बालकका जन्म होनेके अनन्तर देखे कि अमरा अर्थात् जेर निकल गई है कि नह। यदि अमरा न निकली हो तो एक स्त्री प्रसूताकी नाभिके ऊपर दहिना हाथ रखकर उससे नाभिको दवावे और वायें हाथ से पीठको बलपूर्वक दवावे और हिलावे फिर पांवकी एडियोंको नामिके समीप लेजाकर उसके दोनों नितम्बोंको अच्छी तरहसे पीडन करे । फिर उस वेणीको (गूयको ) मुखमें प्रवेशकरके कंठ और तालु पर फेरे ॥ ८९॥
भूर्जपत्रकाचमणिसर्पनिमोकैश्चास्यायोनिधूपयेत् । कुष्ठतालीसकल्कंबल्वजयूषेमेरेयसुरामण्डेवाकौलत्थेवामण्डूकपर्णिपिप्पलीकाथेवासप्लाव्यपाययेदेनाम् ॥ ९० ॥ फिर भोजपत्र, कांच, मणि और सांपके कांचुलीकी इसकी योनिमें धूनी देवे तथा वल्वज वूटीके जडका काथ, भैरेय मद्य, सुरामण्ड, कुल्थीका यूष अथवा 'पीपलके काथके साथ कुष्ठ और तालीशपत्रके कल्कको मिलाकर पीनेके लिये देव ॥ ९०॥
अमरा निकालनेकी विधि । तथासूक्ष्मैलांकिलिमकुष्ठनागरविडङ्गकालविडचव्यपिप्पलीचि. त्रकोपकुञ्चिकाकल्कंखरवृषभस्यजरतोवादक्षिणकर्णमुत्कृत्यदृपदिजर्जरीकत्यबल्वजयूषादीनामन्यतममस्मिन्प्रक्षिप्यमुहूर्त... स्थितमुद्धृत्यताप्लावनंपाययेदेनाम् ॥ ९१॥ . * तथा छोटी इलायची, देवदारु, कूट, सोंठ, वायविंडग, विडनमक, चव्य, पीपल, चित्रकं और कालाजीरा इनके कल्कका विल्वजतृणक क्वाथ आदिमें मिलाकर पिलावे । और वृद्ध खर तथा वृषभके दक्षिण-कर्णको जरासा काटकर पत्थरके