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(७८५) चरकसंहिता-भा० टी०॥
दूसरे महीने में मधुरगमको औषधियोंसे सिद्ध कियाहुआ दूध पीना चाहिये। सीसरे महीनेमें शहद और घृतयुक्त दूध पीना चाहिये । चौथे महीने में ताजे दूधमें एकतोला ताना मक्सन मिला पीना चाहिये । पांचवे महीनेमें घो और दूध मिला पीना चाहिये । छठवें महनिमें मधुर आदि गणसे सिदकिये दूध घी मिला पीना चाहिये । और सातवें महीने में भी यही करना चाहिये । ७१॥
सप्तममासमें अन्य उपचार ।। तत्रगर्भस्यकेशाजायमानामातुर्विदाहंजनयन्तीतिस्त्रियोभाषन्ते तन्नतिभगवानात्रेयः । किन्तुगौत्पीडनाद्वातपित्तश्लेष्माण उरःप्राप्यविदहन्तिततःकण्डूरुपजायतेकण्डूमूलाचकिक्काशावातिर्भवतितत्रकोलोदकेननवनीतस्यमधुरौषधसिद्धस्यपाणितलमात्रकालेऽस्यैदद्यात् । चन्दनमृणालकल्कैश्चास्याःस्तनोदरंविमृद्नीयाताशिरीषधातकीसर्षपमधुकचूर्णैःकुटजार्जकवीजमुस्तहरिद्राकल्कैर्वानिम्बकोलसुरसमञ्जिष्ठाकल्कैर्वा । पृषरिणशशरुधिरयुतयात्रिफलयावाकरवीरकपत्रसिद्धेनवातैलेनाभ्यङ्गः । परिषेक पुनर्मालतीमधुकसि नाम्भसाजातकण्डूयाचकण्डूयनंवर्जयेत्त्वग्भेदनवैरूप्यपरिहारार्थमशक्यायान्तु कण्डामुन्मर्दनोद्धर्षणाभ्यांपरिहार स्यात् । मधुरमाहारजातं वातहरमल्पमल्पस्नेहलवणमल्पोदकानुपानञ्चभुञ्जीत ॥ ७२ ।। स्त्रियें कहा करतीहैं कि सातवें महीनेमें गर्भ में बालकको केश उत्पन्न हो जाते हैं उसके कारण माताके कुक्षिमें दाह उत्पन्न हुआ करती है। परन्तु भगवान् आत्रेयजी कहतेहैं कि ऐसा नहीं होता । उससमय गर्भके उत्पीडन होनेसे वात, पित्त, कफ वक्षस्थलमें प्राप्त हो दाहको उत्पन्न करतेहैं । इसीलिये उससमय खाजसी भी प्रतीत होतीहै । और उस खाजके होतेही पेम्के त्वचाको फाडदेनेवाली किकस खाजकी अधिकतासे त्वचाका फटना उत्पन्न होतीहै । उससमय इस स्त्रीको बेरके क्वाथमें मधुरगणकी औषधियोंको सिद्धकर उन औषधियोंसे सिद्ध कियाहुआ मक्खन दो तोला मात्र समयसमयपर खिलाया करे। चंदन और कमलके कल्कको उस स्त्रीके स्तनों तथा पेटपर मालिश करना चाहिये अथवा सिरसका छिलका, धावेके 'फूल, सरसों और मुलहठीक चूर्णसे सिद्ध किया वैल या कुंडा, वनंतुलसीके बीज, नागर