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शारीरस्थान-अ०८.
(७८६) मोथा और हल्के कल्कसे सिद्ध किया हुआ तैल अथवा नीम, बेर, तुलसी और मंजीठके कल्कसे सिद्ध किया तैल अथवा पृषतहरिणं यां खरगोशके रुधियुक्त त्रिफलेके कल्कसे या कनेरके पत्तोंसे सिद्ध कियेहुए तेलकी स्तनों और पेटपर मालिश करावें यदि स्तनों में खुजली होय तो उनको खुजलाना नहीं चाहिये। मालतीके फूल और मुलहठीके क्वाथसे स्तनोंको धो डालना चाहिये । उस समय खुजलानेसे पेटकी चमडी फट जाती है तथा त्वचा बिगड जाती है। यदि उस समय खुजलीको सहन सके तो मर्दन और त्वचाको हाथसे घिसे। परन्तु नाखूनोंसे खाज न करे उस समय मधुर तथा वातनाशक आहारको थोडी चिकनाई मिला.खाया करे और नमक बहुत थोडा खावे । तथा जल भी थोडा २ पीया करे ॥७२॥
आठवें मासमें गर्भरक्षणविधि। अष्टमेतुमासेक्षीरयवाणूसर्पिष्मतीकालेकालेपिबेत् । तन्नतिभद्रकाप्या,पैङ्गल्यावाधोहस्यागर्भमागच्छेदिति । अस्त्वत्रपेङ्गल्यावाधइत्याहभगवान्पुनर्वसुरात्रेयोनह्येतदकार्यमेवंकुर्वती ह्यारोग्यबलवर्णस्वरसंहननसम्पदुपेतंज्ञातीनामपिश्रेष्ठमपत्य जनयति ॥७३॥
आठवें महीनेमें दूधमें सिद्ध की हुई यवागूको घृतयुक्त कर समय समयपर पीया करे । इस विषयमें भद्रकाप्य ऋषि कहनेलगे यदि गर्भवती स्त्री इस प्रकार पथ्य सेवन करने लगेगी तो उसकी संतान पंगुला होगी । यह सुनकर भगवान् पुनर्वस आत्रेयनी कहनेलगे कि ऐसा नहीं होता बल्कि इसप्रकार पथ्य सेवन करनेसे संतान आरोग्य, बलवर्णयुक्त, स्वरयुक्त, दृढ अंगोंवाली तथा अपने अन्य भाइयोंमें भी. . श्रेष्ठ संतान उत्पन्न होती है ॥ ७३ ॥
. नवममासके गर्भकी रक्षणविधि । नवमेतुखलएनांसासमधुरौषधसिद्धेनतेलेनानुवासयेत् । अतश्चास्यास्तैलंपिचमिधयोनौप्रणयगर्भस्थानमार्गस्नेहनार्थम् ॥७४ नवम महीनेमें मधुर द्रव्योंसे सिद्धकिये तैल द्वारा इस स्त्रीको अनुवासन करना चाहिये और गर्भमार्गको चिकना करने के लिये इस तैलका फोहा योनिमें रखना चाहिये ॥ ४॥
यदिदंकर्मप्रथममासमुपादायोपदिष्टमानवमान्मासात् । तेन ।
गभिण्यागर्भसमयेगर्भधारणेकुक्षिकटिपार्श्वपृष्ठंमृदुभवतिवात.