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(७८३) चरकसंहिता-भाटी किसी प्रकार गर्भके संपीडन होनेसे अथवा अत्यन्त क्रोध, शोक, भय, हर्षा, असूया
और त्रास आदिसे या अन्य किसी दुष्ट कर्मके योगसे गर्भ कुक्षीमही मरजाताहै। उसके ये लक्षण है । पेट-स्तिमित. 'स्तब्ध और विस्तृतसा होजाय और शीतल पड़जाय तथा ऐसा प्रतीत हो कि पेटमें पत्थरसा रक्खा है, गर्भ फडके नहीं अत्यंत दर्द हो, पीडा अत्यन्त हो पर प्रसूतकालसी न हो, योनिसे पानीका स्राव हो, दोनों नेत्र शिथिल होजाय,गर्भवती स्त्री प्रस्तसी होजाय, शरीरमें अत्यन्त व्यथा हो, भ्रांति हो, श्वास अधिक चलनेलगे, व्याकुलता अत्यन्त बढजाय, मलमूत्र आदि वेगके उपस्थित होनेपर भी यथावत् न आसकै। इन लक्षणोंसे गर्भवतीके गर्भमें . . बालक्रकी मृत्यु हो गई है ऐसा जानना ॥ ६३ ॥
सृतगर्भमें उपाय । । तस्यगर्भशल्यस्यजरायुप्रपातनेकर्मसंशमनमित्याहुरेके । म...न्त्रादिकमथर्ववेदविहितामित्येके । परिदृष्टकर्मणाशल्यहा ... हरणमित्येके ॥१४॥
ऐसे समय किसीर आचार्यका मत है कि औषधों द्वारा वा अन्य प्रकार जरायुको निकालदेनाही उत्तम उपाय है क्योंकि नरायुके साथही मराहुआ गर्भभी बाहर आजाताहै। कोई आचार्य कहते हैं कि अथर्ववेदके मन्त्रोंद्वारा मार्जन करनेसे मराहुआ गर्भ निकल जाता है कोई आचार्य कहते हैं कि जो वैद्य शस्त्रकर्ममें दृष्टकर्मा ( तजुर्वेकार ) हो उससे शस्त्रद्वारा जिसमकार निकल सके मृतगर्भको शीघ्र निकाल देना चाहिये ॥ ६४ ॥
व्यपगतगर्भशल्यान्तुस्त्रियमामगांसुराशीध्वरिष्टमधुमदिरासवानामन्यतममग्रेसामर्थ्यतःपाययेत् गर्भकोष्ठविशुद्धयर्थमार्तविस्मरणार्थप्रहर्षणार्थञ्च ॥६५॥ जब उस स्त्रीका मराहुआ गर्भ निकलनाय तो उसको उसी समय सुरा, सीधु, अरिष्ट, मधुनामक मद्य, मदिरा और आसव सामर्थ्यानुसार पिला देवे । उससमय नशेवाली मयके पिलादेनेसे उसके गर्भ कोष्ठकी शुद्धि होती है और स्त्री दुःखको भूलजाती है और उसको आनन्द उत्पन्न होजाताहै ॥ ६५ ॥
अतःपरंवृहणैलानुरक्षिाभिःस्नेहसम्प्रयुक्तैर्यवाग्वादिभिर्विलेप्यादिभिर्वातत्कालयोगिभिराहारैरुपाचरेद्दोषधातुक्लेदविशोषणमात्रतत्कालम् ॥ ६६ ॥