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शारीरस्थान-अ०८.
(७६९) सी पुरुषोंको उपरोक्त विधिसे यज्ञ करना चाहिये । परन्तु क्षेत्रपत्र और वधर्म आदिकोंको त्यागकर जैसा पुत्र उत्पन्न करना हो उसीके अनुरूप भोजन,परिवर्धन, होम आदि करना चाहिये ।। २१॥
द्विजेभ्यःशूद्रातुनमस्कारमेवकुयोदेवगुरुतपखिसिद्धेभ्यश्च॥२२॥ शूद्रकी खीको वेदोक्त मंत्रोंसे यज्ञ करनेका निषेध है इसलिये वह देवता गुरु तपस्वी सिद और ब्राह्मणोंको नमस्कारपूर्वक पुत्रेष्टिको करे ॥२२॥
यायाचयथाविधंपुत्रमाशासीततस्यास्तस्यास्तांतापुत्राशिषम नुनिशम्यतांस्ताञ्जनपदानांमनुष्याणामनुरूपपुत्रमाशासीत सातेषांतेषांजनपदानामाहारविहारोपचारपारच्छदाननुविधी यखेतिवाच्यास्यात् । इत्येतत्सर्वपुत्राशिषांसमृद्धिकरंकर्मव्या- .
ख्यातंभवति ॥ २३॥ जो जो स्त्री पुरुष जैसेजैसे पुत्रोंको उत्पन्न करनेकी इच्छा करतेहों उसी उसी प्रकार ब्राह्मणोंके आशीर्वादोंको श्रवण करें तथा तदनुरूप मनसे स्मरण करें और जिसर देशक मनुष्यों के जैसे पराक्रमी पुत्रोंको उत्पन्न करना चाहे वैसे २ देश, आहार, विहार उपचर्या वस्त्र शय्या आदिकोंका सेवन करे । ऐसा करनेसे उनकी इच्छानुसार संतान उत्पन्न होतीहै इसप्रकार इच्छानुरूप पुत्रके उत्पन्न करनेकी शिक्षा और सम: दिका करनेवाला कर्म कथन कियाजाताहै ।। २३ ॥ .
नतुखलुकेवलमेतदेवकर्मवर्णानांवशेष्यकरमपितुतेजोधातुरप्युदकान्तरिक्षधातुप्रायोऽवदातवर्णकरोभवति । पृथिवीवायु-:: धातुप्रायःकृष्णवर्णकरःसमसर्वधातुप्रायःश्यामवर्णकरः॥२४॥ स्त्रीकी इच्छानुरूप पुत्रका वर्ण रूप होनेमें केवल इतनाही नहीं किन्तु और भी ऐसे भाव होतेहैं जो पुत्रके श्याम गौर आदि वर्णको उत्पन्न करते हैं जैसे-तेजधातु.
और उदकधातु तथा अंतरिक्षधातु अधिक होनेसे गौरवर्ण होताहै । पृथ्वी और वायु धातु अधिक होनेसे कृष्णवर्ण होताहै । सव धातुएँ समान होनेसे श्यामवर्ण होताहै ॥ २४ ॥
सत्त्वभेदका कारण। सत्त्ववैशेष्यकराणिपनस्तेषांतेषांप्राणिनांमातापितृसत्त्वान्थन्तवन्याःश्रुतयश्चाभीक्ष्णस्वोचितञ्चकर्मसत्त्वविशेषाभ्यासश्चेति ॥२५॥