________________
(७७८)
चरकसंहिता-मा० टी०॥ .... त्पलशालुकोदुम्बरशलाटुन्यग्रोधशुङ्गालिवापाययेदेनामाजेन . . पयसा ॥ ५१॥
कमल और कमोदनीको केशर अथवा फूलही शहद और मिसरीके साथ पीस: कर चटावे । और सिंघाडे, कमलगट्टे, तथा कसेरूये खाने के लिये देवे अथवा गई. प्रियंगु, नीलोफर, कमलकी जड, गुल्लडक कच्चे-फल, वडके अंकुर इनको बकरीले दूधमें घोटकर पिलावे ॥५१॥
पयसाचैनांचलातिवलाशालियाष्टिकक्षमूलकाकोलीशृतेनसमधुशर्कररक्तशालीनामोदनमहुसुराभिशीतंसोजयेत् । लावकपिञ्जलकुरङ्गशम्बरशशहरिङ्गणकालपुच्छकरलेनवाघृतसलि
लसिद्देनसुखशिशिरोपवातदेशस्थांभोजयेत् ॥ ५२॥ अथवा वला, अतिबला, शालीवाल, साठीके चावल, ईखकी जड, काकोली इनसबसे सिद्धकिये दूध मिसरी मिला सेवन करावे। तथा शालिचावलोंको नर्मसे पकाकर शीतल होनेपर उनमें शहद,मिसरी और दूध मिला भोजन करनेको देने । अथवा लवा, कपिल, कुरंग, सांभर, शशा, हरिण, कालपुच्छक इनके मांसर' सको घृत और जलसे सिद्ध कर सुशीतल हवाके स्थानम उस रसके संग भातका भोजन करावे ॥ १२॥
तथाकोषशोकायासव्यवायव्यायामतश्चाभिरक्षेत्सौम्याभिश्चैनांकथाभिर्मनोऽनुकलाभिरुपासीततथास्यागर्भस्तिष्ठति ॥५३॥
और ऐसी अवस्थामें उस गर्भवती स्त्रीको क्रोध, शोक, परिश्रम, मैथुन, देहका ‘हिलाना मदि कर्म नहीं करना चाहिये । तथा सुन्दर पवित्र मनके हरनेवाली बातोंसे उस गर्भवती स्त्रीके चित्तको प्रसन्न रखना चाहिये । इन उपायोंके करनसे. गर्भ अपने स्थानमें टिका रहताहै ॥ ५३ ।।
आमगर्भमें पुष्पदर्शन । यस्याःपुनरामान्वयात्पुष्यदर्शनस्यात्प्रायस्तस्यास्तदर्भवाधकंभ-' वतिविरुद्धोपक्रमत्वात्तयोः ॥ ५४ जिस गर्भवतीके आमदोषसे रज दिखाईदेने लगजायं उससमय उसकी चिकि सामें विरोधी औषधियोंका उपयोग होनेसे प्रायः गर्भको हानि होती है। परन्तु विधिवत् समयानुकूल उससमय भी उपचार करना चाहिये ॥ ५४ ।।