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शासरस्थान-०८
(७७७) भोजन करे अथवा भूखी रहे या दुष्ट आहार व्यवहार करे तो इनसे उसके गर्भ पतन होनेका भय है। इसलिये गर्मवती स्त्रीको हित आहार और हित आचार एवं शुद्ध प्रसन्न मन रहना चाहिये । याद ऐसे कार्योंसे गर्भका पात या नाव होनेलगे तो उसमें जो उपाय करने चाहिये उनका वर्णन करते हैं ॥ ४९ ॥
गर्भकी रक्षावधि । पुष्पदर्शनादेवनांब्याच्छयनंतावन्मृदुसखशिशिरास्तरणसं. स्तीर्णमीषदवनतशिरस्कप्रतिपद्यस्वति । ततोयष्टिमधुकसर्पि- . भ्यापरमशिशिरवारिणिसंस्थितान्यांपिचुमाप्लाव्योपस्थसमीपे स्थापयेत् । तस्याः तथाशतधौतसहस्रधौतात्यांसर्पिाम.. धोनाभःसर्वतःप्रदिह्यात् । गव्येनचैनांपयसासुशीतेनमधुका.
मधुनावान्यग्रोधादिकषायेणवापरिषेचयेदधोनाभेः । उदकंवा सुशीतमवगाहयेत्क्षीरिणांकषायगुमाणाञ्चस्वरसपरिपीतानि चेलानिग्राहयेत् । न्यग्रोधादिसिद्धयोर्वाक्षीरसर्पिषों पिचुंग्राहयेदतश्चैवाक्षमाप्राशयेत्प्राशयेद्वाकेवलञ्चक्षीरसार्पिः ॥ ५० ॥ जिससमय गर्भवतीकी योनिसे रजस्राव होने लगे उसको उसीसमय कहे कि तूं नरम सुखकारी शीतल विछीहई शय्यापर मस्तकको कुछ नीचाकर लेटजा । इसके
अनन्तर मुलहठी और घृतको मिलाकर शीतल पानीके संयोनसे शीतलकर एक •रुईका फोहा बना किसी नरमवस्त्रसे भिगोकर और लपेटकर उस फोहेको स्त्रीकी योनिमें रखदे । तथा एकसौ वार या हजारवार धोयेहुए मक्खनको नाभिसे नीचे शतिल २ लेप कर देवे । और शीतल गौका दूध, अथवा मुलहठीका क्वाथ या न्यग्रोधादिगणका क्वाथ शीतलकरके उससे मंदमंद तरडे नाभिके नीचे देवे। अथवा शीतल जलकीही धारा डाले । अथवा वड आदि क्षारी वृक्षोंके कषाय और कसैले रसवाले वृक्षोंके स्वरसमें छोटासा नम्रवस्त्रका टुकडा भिगो योनिमें रक्खे अथवा वड आदिके काथसे सिद्धकिये दूध या घृतमें भिगोया हुआ फोहा योनिमें -रक्खे और इस वृत और दूधमेंसे दो तोला पीनेको भी दे देवे । अथवा इन औष धियोंसे सिद्ध किये घृत और दूध पिलावे ॥५०॥
पद्मोत्पलकुमुदकिञ्जल्कांश्चास्यसमधुशर्कराँल्लेहाथदद्यात् । शृ. काटकपुष्करबीजकशेरुकान्भक्षणार्थम् । गन्धप्रियंग्वसितो.