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: शारीरस्थान-अ मांस. खाय उसके गर्भसे शर्करा, पथरी और शनैर्महवाली सन्तान उत्पन्न होतीहै।' पराहका मांस खानेवाली गर्भवतीके गर्भसे लालनेत्रोंवाला और हत्यारा तथा कठोर रोमोवाला पुत्र उत्पन्न होता है। मछली खानेवाली गर्भवतीकी संतान बहुत देरमें पलक झपकनेवाली तथा टेढे नेत्रोंवाली होती है । गर्भवतीके अत्यन्त मीठा खानेसे प्रमेही, गूंगी और अधिक स्थूल सन्तान उत्पन्न होतीहै । गर्भवतीके अधिक खट्टा . खानेसे रक्तपित्त रोमवाली, त्वचाके रोग तथा नेत्रगवाली सन्तान होती है।गर्भवतीके अत्यन्त लवणरस सेवनसे अकालमें सफेद बाल होजानेवाली,सलवटवाली तथा गंजी सन्तान उत्पन्न होती है।गर्भवतीके चरपरे रसके अत्यन्त सेवनसे दुर्बल अल्पशुक्र तथा अनपत्य सन्तान उत्पन्न होती है । गर्भवती अत्यन्त कडुआ रस सेवनसे सूखेहुए शरीरवाली अथवा शोथरोगी, निबल और कृश सन्तान उत्पन्न होती है । गर्भवतीके अत्यन्त कषायरस सेवनसे. काले वर्णकी अफारा रोगबाली और उदावर्च रोगवाली सन्तान उत्पन्न होती है ॥ ४ ॥
यद्यच्चयस्ययस्यव्याधेर्निदानमुतत्तदासेंवमानान्तर्वलीतद्धिकारबहुलमपत्यंजनयति ॥ ४३॥ गर्भवती स्त्री जी २.द्रव्य जिन २ रोगों के उत्पन्न करने के कारण कहे गये हैं उनके आधिक सेवनसे उन २ रोगोंसे ग्रसित संतान उत्पन्न करती है ॥४३॥ · · पितृजास्तुशुक्रदोषासातजैरपचारैव्याख्याताइतिगोपघात..'
कराभावाव्याख्याताः॥ १४ ॥ पिताके जो शुक्र दोष हैं माताके अपचारोंसे उनका भी निर्देश जान लेना।इस प्रकार गर्भ उपघातकारक भावोंका वर्णन कियागया ॥ ४४ ॥
गर्भिणीको उपचारविधि । तस्मादहितानाहारविहारान्प्रजासम्पदमिच्छन्तीस्त्रीविशेषेण . वर्जयेत्साध्याचाराचात्मानमुपचरोद्धतापयामाहारविहारा
भ्याम् ॥४५॥ इस लिये संचानक हितकी इच्छा करती हुई गर्भवती स्त्री अहित आहार विहार रोको त्याग देवै तथा श्रेष्टं आचार और हित आहार विहारसे शरीरको रक्षा करती रहे ॥ ४५ ॥
व्याधींश्चास्यामृदुमधुरशिशिरसुखसुकुमारप्रायैरौषधाहारोप. चारैरुपचरेत् । नचास्यावमनविरेचनशिरोविरेचनानिप्रयोज-: