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शारीरस्थान -म० ८.
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तयोः कर्मणा वेदोक्तेन विवर्तनमुपदिश्यतेप्राग्व्यक्ती भावात् ॥२९॥ - उन स्त्रीपुरुषको गर्भके प्रगट होने से पहिले जिसप्रकारका वर्ताव करना चाहिये उनको वेदोक्तरीतिसें वर्णन करते हैं ॥ २९ ॥ प्रयुक्तेनसम्यक्कर्मणांहिदेशकालसम्पदुपेतानां नियतमिष्टफल- ": त्वं तथेतरेषामितरत्वम् । तस्मादापन्नगभस्त्रियमभिसमीक्ष्य प्राग्व्यक्तीभावाद्गर्भस्यपुंसवनमस्यैदद्यात् ॥ ३० ॥
जो कर्म जैसे देश, जैसे समयमें जैसी सामग्री से विधिवत् किया जाता है उसका वैसा फल होता है इसलिये जो कर्म उत्तम रीक्षिसे उत्तम सामग्रीद्वारा उत्तम समय पर किया जाता है उसका उत्तम फल प्राप्त होता है तथा इसके विपरीत करनेसे उसका अनिष्ट फल प्राप्त होता है । अतएव गर्भवती स्त्रीको दूसरे महीने में पुंसवन कर्म करना चाहिये ॥ ३० ॥
पुंसवनावधि । 'गोष्ठे जातस्यन्यग्रोधस्य प्रागुत्तराभ्यां शाखाभ्यांशुङ्गेऽनुपहते आदाय द्वाभ्यांधाम्यमाषाभ्यां सम्पदुपेताभ्यां गौरसर्षपाभ्यां वासह दनिप्रक्षिप्यपुष्येऋक्षेपिबेत् ॥ ३१ ॥
o गौओं के विश्राम करने की जगहके वट वृक्षोंका जो टहना पूर्व और उत्तरकी ओर हो उसमें निर्दोष उत्तम दो शुंग (अंकुर या कली ) तोडलावे और दो स्वच्छ मोटे चावल तथा दो उडद उन दोनों अंकुरोंमें मिलाकर अथवा दो सफेद सरसोंके दाने मिलाकर दहीमें मिलाकर वह गर्भवती स्त्री पुष्यनक्षत्रमें पीवे ॥ ३१ ॥ तथैवअपराञ्जीवकर्षभकापामार्गसहचरकल्कांश्चयुगपदेकैक
शोयथेष्टं वाप्युपसंस्कृत्यपयसा ॥ ३२ ॥ कुडयकीटकंमत्स्यकञ्चोदकाञ्जलप्रक्षिप्य पुष्येणापिबेत् ॥ ३३ ॥
अथवा जीवक, ऋषभक, सफेद अपामार्ग, सफेद सहचर, इन सबका कल्क चना अथवा इनमेंसे किसी एकका कल्क वनाकर गौके दूधके संग पुष्यनक्षत्रर्मे पान करे अथवा कुड्य कीट ( दीवार में होनेवाला धन्वी कीट विशेष ) उसको अथवा छोटीसी मछलीको पुष्यनक्षत्र में एक अंजली जलके साथ पीवे ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ तथा कनकमयात्राजवानायसांश्चपुरुषकानग्निवर्णाननुप्रमाणान्दनिपयासिउदकाञ्जलावाप्रक्षिप्याविदनवशेषतः पुष्येण ॥३४॥
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