________________
(६८) चरकसंहिता-भा०टी०। .: नस्थालीपाकमभिसंसा-त्रिर्जुहुयात्। यथाम्नायञ्चोपमन्त्रि
तमुदकपात्रतस्यैदद्यात् सर्वोदकार्थान्कुरुष्वेति ॥ १९ ॥ . इसके अनन्तर इस पुत्रकी कामनावाली स्त्रीको अग्निसे पश्चिमकी ओर और ब्रह्माको अग्निसे दक्षिण ओर स्थापन करे । और उस स्त्रीके भर्चाको यथेष्ट पुत्रके उत्पन्न होनेकी इच्छासे इसके पास बैठावे। फिर आचार्य प्रजापतिके उद्देशसे अथवा "प्रजापति"आदि मंत्रका निर्देशकर उस स्त्रीके पतिका हाथ स्त्रीकी योनिसे स्पर्श कराकर "विष्णुयोनि कल्पयतु" इसको पढतेहुए पुढेष्टी यज्ञ करावे और घृतकें साथ चरुं मिलाकर स्थालीपाक बनाकर तीनवार हवन करावे । फिर वेदोक्त मंत्रोंसे उपमंत्रित किया हुआ जलपूर्ण कलश उस स्त्रीको देवे । और यह कहे कि, संपूर्ण. जलके कार्य इस जलसे करना ॥ १९ ॥
यज्ञके अंतमें कर्म । ततःसमातेकर्मणिपूर्वंदाक्षिणपादमभिहरन्तीप्रदक्षिणमग्निमनुपरिकामेत्ततोब्राह्मणान्स्वस्तिवाचयित्वासहभाऽऽज्यशेषप्राश्रीयात । पर्वपमान्पश्चास्त्रीनचउच्छिष्टमवशेषयेत्ततस्तीसहसंवसेतामष्टरात्रतथाविधपरिच्छदावेवचस्यातांतथेष्टपुत्रंज- .. नयेताम् ॥ २० ॥ फिर इस कर्मकै समाप्त होनके अनन्तर पहिले दक्षिण पावोंको आगे रखतीहुई अग्निकी क्रमपूर्वक प्रदक्षिणा करे।फिर ब्राह्मणोंसे स्वस्तिवाचन कराकर यज्ञसे वचे. हुए घृतको और स्थालीपाक चरुको पतिसहित स्त्री भक्षण करे अर्थात् पहिले. उसको पति भक्षण करे फिर स्त्री भक्षण करे परन्तु उसमेंसे वाकी जूठा न छोडे. फिर वह इस आंठवीं रात्रिमें पूर्वोक्त उत्तम शय्यापर पूवाक्त विधिसे सहवास कराने इ.सप्रकार करनेसे इच्छानुरूप पुत्र उत्पन्न होताहै ॥ २० ॥
यातुस्त्रीश्यामलोहिताक्षंव्यूढोरस्कमहाबाहुपुत्रमाशासीत यावाकृष्णंकष्णमृदुदीर्घकेशंशुक्लाक्षशुक्लदन्तंतेजस्विनमात्म. ... वन्तम् एषएवानयोरपिहोमविधिःकिन्तुपरिबर्हवर्णवज्यस्यात् पुत्रवर्णानुरूपस्तुयथाशीरेवतयोःपरिबोंऽन्यःकार्य स्यात्॥२१॥ जिस स्त्रीको लालनेत्र, श्यामवर्ण, बड़ेरकंधे, विशाल छाती और महावाहु पुत्रके उत्पन्न करनेकी इच्छा हो अथवा कृष्णवर्ण नम्र,दीर्घ कालेकेशोंवाले श्वेत नेत्रोंवाले, श्वेत दंत पंक्तीवाले,तेजस्वी,ज्ञानसंपन्न पुत्र उत्पन्न करनेकी इच्छा हो तो इन दोन