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चरकसंहिता - मा० टी० |
यप्रातश्चशालियवान्नविकारान्दधिमधुसर्पिर्भिः पयोभिर्वासंसृ
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ज्यभुञ्जीत ॥ १४ ॥
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यदि उस स्त्रीको गौरवर्ण, सिंह के समान पराक्रमी, तेजस्वी, पवित्र, सत्वसंपन्न "पुत्र उत्पन्न करनेकी इच्छा हो तो ऋतुस्नान से शुद्ध होकर यवके सत्तुओंका मंथ बना, "मधु घृतयुक्तकर, सफेदरंग के बछडेवाली सफेद गौके दूधके साथ चांदी या कांसेके पात्रमें घोलकर नित्यम्प्रति प्रातःकाल सातरोजतक पीया करे और भोजन भी शालिचावल, यवके मैदसे बनाहुआ पदार्थ, दही, मधु, घृत, दूध इन सबको मिलाकर खाया करे ॥ १४ ॥
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तथासायमवदातशरणशयनासनयानवसन भूषणवेषाचस्यात् १५ फिर सायंकालमें सुन्दर सुसज्जित घर में उत्तम शय्या, आसन आदिपर आराम करे एवम् उत्तम वस्त्र, भूषण और वेषको धारण करे ॥ १५ ॥
सायंप्रातश्वशश्वत् श्वेतंमहान्तं ऋषभम्आजानेयहरिचन्दनाङ्कितं पश्यत् । सौम्याभिश्चैनां कथाभिर्मनोऽनुकूलाभिरुपासीत । सौम्याकृतिवचनोपचारचेष्टांश्चस्त्रीपुरुषानितरानपिचेन्द्रियार्थानवदातान् पश्येत् । सहचर्य्यश्चैनांप्रियहिताभ्यां सततमुपचरेयुः तथाभतीनच मिश्रीभावमापद्येयाताम् ॥ १६ ॥
तथा सायंकाल और प्रातःकाल नित्य सफेदवर्णके वडभारी बैलको और पीले चन्दनसे चर्चित हुए उत्तम सफेद घोडेको देखा करे । और उस स्त्रीके चित्तको सुन्दर मनोहर, पवित्र वचन, उपचार, चेष्टा आदिसे प्रसन्न रक्खे तथा पुरुषका भी ऐसाही आचरण रहना चाहिये । एवं इन दोनोंको सुन्दर दैवी वस्तुओंका दर्शन कराना चाहिये। इस स्त्रीके समीप रहनेवाली उत्तम सहचारिणी स्त्रियें उसको हित और प्रिय आचरण से सेवा करती रहें। और इन सातदिनोंमें उस स्त्रीका पति भी उत्तम आचारोंका सेवन करे परन्तु यह दोनों आपसमें सहवास न करें ॥ १६ ॥ इत्यनेन विधिनासप्तरात्रंस्थित्वाष्टमेऽहन्याप्लुत्याद्भिः सशिरस्कं सहभत्र चाहतानिवस्त्राणिआच्छादयेदवदातानिअवदाताश्च खजोभूषणानिविभृयात् ॥ १७ ॥
इस विधीसे सात रात्रि व्यतीत होने के अनन्तर आठवें दिन प्रातःकाल शिरसहिव स्नानकर यह दोनों स्त्री पुरुष पवित्र सुन्दर नवीन वस्त्रोंको धारण कर उत्तम भूषण और सुन्दर फूलोंकी मालाओंको धारण करें ॥ १७ ॥