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चरकसंहिता-भा०टी०। , तुप्रच्यवमानपुरीषमनुबध्नातिअतियोगेन । तथासूत्ररुधिर
मन्यांश्चशरीरधातून यत्तुसर्वशरीरचरंबाह्यत्वग्बिभर्तियत्तुत्वगन्तरेत्रणगतलसीकाशब्दलभतेयञ्चोष्मणानुबद्धंलोमकूपेभ्योनिष्पतत्स्वेदशब्दमवाप्नोतितदुदकंदशाञ्जलिप्रमाणम्॥१५॥ नवाजलय-पूर्वस्याहारपरिणामधातोर्यद्रसमित्याचक्षते । अष्टौ शोणितस्यसतपुरीषस्यषट्श्लेष्मणःपञ्चपित्तस्यचत्वारोमूत्रस्य त्रयोवसायाद्वौमेदसःएकोमज्ज्ञः । मास्तष्कस्यअञ्जिलिः शुक्रस्यतावदेवप्रमाणंतावदेवश्लेष्मणश्चोजसइत्येतच्छरीरतत्वमुक्तम् ॥ १६ ॥ कोई कहतेहैं कि अंगोंका विभाग प्रत्यक्ष आर अनुमानद्वारा दोनों प्रकार नहीं होसकता । वह शरीरेक स्वभावसेही है । शरीरके धातुओंका अजली द्वारा परिमाण कथन करतेहैं । वह परिमाण प्रत्येक मनुष्यकी अपनी अंजलीपर निर्भर है। अत्यंत तीक्ष्ण विरेचन देनेस जो जल विरेचन द्वारा पुरीषसे मिलकर निकल जाताहै वह दश अंजली प्रमाण होताहै । तथा जो जल मूत्र द्वारा, रुधिर द्वारा निकलताहै एवम् संपूर्ण शरीरमें विचरण करनेवाला त्वचाको पालन करनेगला, जो त्वचामें व्रण होजानेसे लसीका कहाजाताहै, जो गर्मी के आनेसे गेमकूपों द्वारा निकलताहै । यह सब दश अंजली प्रमाण जल होताहै ।जो आहार किया जाताहै उसका परिमाण 'धातु, रस नौ अंजली होताहै । रक्त आठ अंजली होताहै । पुरीष सात अंजली होताहै ! कफ छ: अंजली होताहै । पित्त पांच अंजली होताहै । मूत्र चारअंजली होताहै। वसा तीन अंजली होताहै । दोअंजली मेद । एक अंजली मन्जा। आधी' अंजली मस्तिष्क । आधी अंजली शुक्र । आधी अंजली श्लेष्मका ओजाइसप्रकार शरीरमें अंजलियोंका प्रमाण जानना ॥ १५ ॥ १६ ॥
__पार्थिव द्रव्योंका वर्णन । तत्रयाविशेषतःस्थलंस्थिरमूर्तिमगुरुखरकाठनमनखास्थिद- . न्तमांसचर्मवर्च केशश्मश्रुनखलोमकण्डरादितत्पार्थिवंगन्धो प्राणश्च ॥ १७॥ उन सब अंगोंमें जो विशेषकरके स्थूल, स्थिर, मूर्तिमान, भारी, खर, कठोर, अग होता है तथा दांत, नख, हड्डी, मांस, चर्म, मल, केश, श्मश्नु,रोम.और कण्डय