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चरकसंहिता - भा० टी० ।
पांच कर्म. इंद्रिय हैं जैसे हाथ, पांव, पायु (गुदा), उपस्थ (भग या लिंग )
और जिह्वा ॥ ८ ॥
हृदयं चेतनाधिष्ठानमेकम् ॥ ९ ॥ चेतनाका अधिष्ठान हृदय है ॥ ९ ॥
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१० प्राणायतन और मर्म । दशप्राणायतनानितयथामूर्द्धा कण्ठोहृदयंनाभिगुदबस्तिरोजः शुक्रशोणितं मांसमिति । तेषुषट्पूर्वाणिमर्म संख्यातानि ॥ १० ॥ दश प्राणायतन हैं । जैसे मस्तक, कण्ठ, हृदय, नाभि, गुदा, वस्ती, ओज, शुक्र, रुधिर और मांस । इन दश स्थानों में प्राण रहनेसे इनको प्राणायतन अर्थात प्राणों के रहने के स्थान कहते हैं । इनमें कण्ठ, मस्तक, हृदय, नाभि, गुदा, वस्ति इन arat मर्मस्थान भी कहते हैं ॥ १० ॥ १५ कोष्ठ | पञ्चदशकोष्ठांगानितद्यथानाभिश्च हृदयञ्चक्लोमचय कृञ्चपुीहाच वृक्कौ चवस्तिश्चपुरीषाधानञ्चामाशयश्चेतिपक्वाशयश्चोत्तर
गुदञ्चाधरगुदञ्चक्षुद्रान्त्रञ्चस्थूलान्त्रञ्चव पावहनञ्चेति ॥ ११ ॥ कोष्ठांग ( कोठे ) पंद्रह हैं। जैसे - नाभि, हृदय, क्लोम, यकृत, प्लीहा, वृक, वस्ती, मलाशय, आमाशय पक्वाशय, उत्तरगुद, अधोगुद, क्षुद्रांत्र, स्थूलांच, वपावहन ॥११॥ प्रत्यङ्गों के नाम |
षट्पञ्चाशत्प्रत्यङ्गानिषट्सुअंगेषु उपनिबद्धानियान्यपरिसंख्यातानि पूर्व मंगेषुपरिसंख्यायमानेषुतान्यन्यैः पर्य्यायौरिह प्रकाश्य व्याख्यातानिभवन्ति । तद्यथा- द्वेजंघापिण्डिकेद्वेऊरुपिण्डिके द्वौस्फचौ द्वौवृषणौए कंशेफः देउखेद्वौ वंक्षणौद्रो कुकुन्दरौ एकंबस्तिशीर्षमेक मुदरंद्वौ स्तनौ। भुजौ द्वे बाहुपिण्डिकेचिबुकमेकंद्वावोष्ठौ सक्कण्यौ द्वौ दन्तवेष्टको एकतालुए कागलशुण्डिकाद्वेउपजिह्निकेएका गोजिह्विकाद्दौगण्डौद्वे कर्णशष्कुलिकेद्दौ कर्णपत्रको अक्षिकूटेचत्वारिअक्षिवत्मनिद्वेअक्षि कनीनिकेद्वेभ्रुवौ एकमवटुचत्वारिपाणिपादहृदयानिन वमहान्ति छिद्राणिसप्तारी स देवाधः ॥ १२ ॥
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