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चरकसंहिता-भा० टी०॥
. .. त्वचाके भेद । यथावच्छरीरेषट्त्वचस्तद्यथा-उदकधरात्वग्वाह्याद्वितीयास्वगसृग्धरातृतीयासिध्मकिलाससम्भवाधिष्ठानाचतुर्थीकुष्ठसम्भवाधिष्ठानापञ्चमीअलजीवद्रधीसम्भवाधिष्ठानाषष्ठीतुयस्यां छिन्नायांताम्यत्यन्धइवचतमःप्रविशतियांचाप्याधिष्ठायारूषि .. जायन्तेपर्वसन्धिषुकृष्णरक्तानिस्थूलमूलानिदुश्चिकित्स्यतमानीतिषट्त्वचएताःषडङ्गशरीरमवतत्यतिष्ठन्ति ॥ ३ ॥ यथावत् शरीरमें छात्वचा होती हैं। वह इसप्रकार हैं। जैसे-पहिली उदकधरा त्वचा अर्थात् ऊपरवाली बाहरी त्वचा,दूसरी असृग्धरा, तीसरी त्वचा सिध्म(छीम) यह फिलास रोगके उत्पन्न होनेका स्थान है, चौथी त्वचामें कुष्ठ आदि रोग उत्पन्न होतेहैं, पांचवी त्वचामें अलजी, विद्रधी आदि रोग उत्पन्न होतेहैं,छठी त्वचा वह है जिसके फटजानेसे मनुष्यको मूर्छा उत्पन्न होजातीहै, नेत्रोंमें अंधकार आजा: ताहै । इसीके आश्रयसे जोडोंकी संधियोंमें काला, तथा लालवर्णके अत्यंत दुश्चिः कित्स्य व्रण प्रगट होतेहै । यह त्वचा षडंग शरीरको लपेटकर रहतीहै ॥३॥
शारीरके अंगविभाग । तत्रायंशरीरस्याङ्गविभागातद्यथा--द्वौबाहद्वसस्थिनशिरोविमन्तराधिरितिषडङ्गमङ्गम् ॥ ४ ॥ यह शरीर.छ. अंगोंमें विभक्त है । जैसे-दो बाहें और दो ऊरू ( टांगें) तपः एक गर्दनसहित शिर एवम् छठा मध्यभाग ॥४॥
शरीरकी हड्डियोंकी संख्या। त्रीणिषष्टयधिकानिशतान्यस्थनांसहदन्तोलूखललखैस्तद्यथा-- द्वात्रिंशद्दन्तोलूखलानिद्वात्रिंशदन्ताविंशतिर्नखाविंशतिः पाणिपादशलांकाश्चत्वार्याधिष्ठानान्यासांचत्वारिपाणिपादपृष्ठानिषष्टिरंगुल्यस्थीनिवपाष्ण्योढेकूर्चाधश्चत्वारःपाण्योमणिकाश्चत्वारःपादयोर्गुल्फाःचत्वार्य्यरत्न्योरस्थीनिचत्वारिजंघयोबैजानुनोर्द्वकपरयोऊवाबाह्वोःसांसयोःद्वावक्षकौद्वेतालूनिटे श्रोणिफलकेएकंभगास्थिपुंसमिद्रास्थिएकत्रिकसंश्रितमेकंगुः ।