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: - शारीरस्थान - अ० ७. (-७५५८); ञ्चयत् । देहवृद्धिकराभावाचलवृद्धिकराश्चये ॥ ३५ ॥ परिणामकराभावायाचतेषां पृथक्रिया । मलाख्याः सम्प्रसादाख्यां धातवः प्रश्न एवच ॥३६॥ नवकोनिर्णयश्चास्यविधिवत्सम्प्रकाशितः । तथाशरीरविचयेशारीरेपरमर्षिणा ॥ ३७ ॥ इतिचरकसंहितायांशारीरस्थाने शरीर विचयः शारीरः समाप्तः ॥ ६ ॥ यहांपर श्लोक हैं कि इस शरीरविचयशारीर अध्याय में शरीरका रूप तथा जो - गर्भ जिसप्रकार जीता है जिसप्रकार रोगोंसे केशित होता है, जिसप्रकार क्लेश तथा विनाशको प्राप्त होता है और इसके सम्पूर्णधातुओंकी वृद्धि और हास, क्षीण धातु-. ओक बढानेकी औषधी, देह वृद्धि करनेवाले भाव तथा बलवृद्धि करनेवाले भाव, - भोजन के परिणाम करनेवाले भाव और उनकी भिन्न २ क्रिया मल संज्ञक धातुयें तथा प्रसाद संज्ञक धातुयें, नौ प्रश्न, उन प्रश्नोंका निर्णय यह सब महर्षि आत्रेयजीने वर्णन किया है || ३४ ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ ३७ ॥
• इति श्रीमहर्षि चरकप्रणीतायुर्वेदसंहितायां शारीरस्थाने पं० रामप्रसादवैद्योपाध्याय विरचितप्रसादन्याख्यभाषाटीकायामपस्मारनिदानं नामषष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
सप्तमोऽध्यायः ।
अथातः शारीरसंख्यानाम शारीराध्यायं व्याख्यास्याम इति हस्माह भगवानात्रेयः ।
अब हम शरीरसंख्या नामक शारीराध्यायकी व्याख्या करते हैं. इसप्रकार भगचान् आत्रेयजी कथन करने लग ।
शरीरसंख्यामवयवशः कृत्स्त्रंशरीरंप्रविभज्य सर्वशरीरसंख्यानप्रमाणज्ञानहेतोर्भगवन्तमात्रेयमग्निवेशः पप्रच्छ ॥ १ ॥
संपूर्ण शरीर के अवयवोंके विभागसे संपूर्ण शरीरके अवयवोंकी संख्याको निवेश आत्रेयजीसे पूछने लगे ॥ १ ॥
तमुवाच भगवानात्रेयः । शृणुमत्तोऽग्निवेश ! सर्वशरीरमभिचक्षाणाद्यथाप्रश्नमेकमनाः ॥ २ ॥
भगवान आत्रेयजी कथन करनेलगे कि हे अग्निवेश ! संपूर्ण शरीर के अवयवों की व्याख्या एकाग्रचित होकर मुझसे यया प्रश्न श्रवण करो ॥ २ ॥
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