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शारीरस्थान - अं०.६
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काल है | कोई कहता है कि काल छिद्र प्राप्त होनेसे घात पाकर आक्रमण करता है अर्थात् मृत्युके लिये मनुष्यमें जब जो अवकाश होता है वही उसका मृत्युकाल है । परन्तु यह कथन सत्य नहीं क्योंकि कालके लिये कोई छिद्रता और अच्छिद्रता नहीं है । काल तो स्वयं स्वलक्षण सिद्ध है । उसमें कोई छिद्रता और अंच्छिद्रता नहीं हो सकती ॥ २९ ॥
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तथाहुरपरेयोयदाम्रियते स तस्य नियतामृत्युकालः ससर्वभूतानां सत्यः समक्रियत्वादिति । तदपिचान्यथार्थग्रहणंनहिकश्चिन म्रियतेइतिसमक्रियः कालः पुनरायुषः प्रमाणमधिकत्योच्यने ॥३०॥
अन्य इसप्रकार कहते हैं कि जो जब मरता है उसका वही मृत्युकाल है। क्योंकि काल सत्य है और रागद्वेष रहित है। सबके लिये एकसी क्रिया करनेवाला है। परंतु यह भी ठीक नहीं देखने में आता है कि बहुतसे मरजाते हैं और बहुतसे नहीं मरते. इसलिये काल समक्रिय अर्थात् एकसी क्रिया करनेवाला नहीं है। यदि सबके लिये एककाल एकसाही होय तो उस कालमें या तो सवकी मृत्युही होजाती अथवा कोई भी न मरता । यदि आयुके प्रमाणसे काल मानाजाय तो सौवर्ष से पहिल किसी को मनाही नहीं चाहिये इसलिये कालको आयुके प्रमाणसे भी समक्रिय नहींकहा जासकता ॥ ३० ॥
यस्यचेष्टयोयदाम्रियतेतस्य सनियत मृत्युकालइतितस्य सर्वे भावायथास्वनियतकालाभविष्यन्ति । तञ्चनोपपद्यते प्रत्यक्षंह्यकालाहारवचनकर्मणां फलमनिष्टविपर्य्ययेचेष्टम् । प्रत्यक्षतश्चोपलभ्यतेखलुकालाकालयुक्तिस्तासुतासुअवस्थासुतं तमर्थ - मभिसमीक्ष्य । तद्यथाकालोऽयमस्य तुव्याधेराहारस्योषधस्य प्रतिकर्मणोविसर्गस्य चाकालोवेतिलोकेऽप्येतद्भवति । काले. देवोवर्षत्यकाले देवोवर्षतिका लेशी तमकाले शीतकालेत प्रत्यकालेतपतिकालेपुष्पफलमका लेपुष्पफलमिति। तस्मादुभयमस्ति कालमृत्युरकाले चनैकान्तिकमत्र । यदिहांकाले मृत्युर्नस्यान्नि-: यतकालप्रमाणमायुः सर्वस्यात् ॥ ३१ ॥
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याद कहो कि जो जिससमय मरे उसका वही मृत्युकाल निश्चित है। तो उसके जितने भाव हैं वह सबही मृत्युंके सम्बन्ध में निश्चित काल मानने पडेंगे तो ऐसा भी.
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