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सूत्रस्थान - अ० २७.
• प्याजके गुण ।
श्लेष्मलोमारुतन्नश्च पलाण्डुर्नचपित्तनुत् । आहारयोगी बल्यश्च गुरुर्वृष्योऽथरोचनः ॥ १६९ ॥
(३४७.
प्याज - कफकर्ता, वातनाशक, किंचित् पित्तकर्त्ता, आहारमें उपयोगी, बलकारक, भारी, पुष्टिकारक, और गुरु, वृष्य तथा रुचिकारक होता है ॥ १६९ ॥ लहसनके गुण | क्रिमिकुष्ठकिलासघ्नोवातघ्नोगुल्मनाशनः ।
स्निग्धश्चोष्णश्चवृष्यश्चलशुनः कटुकोगुरुः १७० ॥
लहसुन - काम, कुष्ठ, किलास तथा वात और गुल्मको नष्ट करता है एवम् स्निग्ध, उष्ण, वृष्य, कटु और भारी है ॥ १७० ॥
शष्काणिकफवातघ्नान्येतान्येषांफलानितु । हरितानामयं चैषां षष्ठोवर्गः समाप्यते ॥ १७१ ॥ इति हरित वर्गः ।
यह सूखे हुए तथा इनके बीज यह सब - कफ और वायुके नष्ट करनेवाले होते हैं इस प्रकार हरितवर्णनामक यह छठा वग समाप्त हुआ ॥ १७१ ॥
॥ इति हरित वर्गः ॥ अथमद्यवर्गः ।
प्रकृत्यामद्यमम्लोष्णमम्लं चोक्तं विपाकतः । सर्वसामान्यतस्तस्यविशेषउपदेक्ष्यते ॥ १७२ ॥
मद्य - प्रायः स्वभावसे ही खहा और उष्ण होता है और विपाकमें भी अम्ल हीं होता है । पहले सामान्यतासे मद्यके गुणों का वर्णन करचुकेहैं अब विशेषतासे कथन करते हैं ॥ १७२ ॥
सुराके गुण । कृशानांसक्तमूत्राणाग्रहण्यर्शोविकारिणाम् । सुराप्रशस्तावातघ्नस्तन्यरक्तक्षयेषुच ॥ १७३ ॥
"जो मनुष्य- कृश, मूत्ररोगी, अर्शपीडित हों उनको तथा क्षयरोगबालोंकों, एवम्
जिस स्त्रीके स्तनोंमें दूध सूख गया हो उसको, और रक्तक्षयवालेको सुरा (शराब)
पीना हितकारी है । सुरा- वातनाशक होती है ॥ १७३ ॥