________________
.
.
.
(३८६) चरकसंहिता-मा० टी०॥
रसरक्त मांस मेदादिगत दोषोंकी चिकित्सा। रसजानांविकाराणांसर्वलंघनौषधम् । . .
विधिशोणितकेऽध्याये रक्तजानांभिषग्जितम् ॥ २८ ॥ रसजन्य विकारोंमें लंघन करना ही संवोत्तम औषधि है। रक्तजनित विकारोंमें विविध शोणतीयाध्यायमें कही हुई चिकित्सा द्वारा रक्त विकारोंको जीतना चाहिये ॥ २८ ॥
मांसजानान्तुसंशुद्धिःशस्त्रक्षाराग्निकर्मच।
अष्टौनिन्दितसंख्यातेमेदोजानांचिकित्सितम् ॥ २९॥ मांस जनित विकारों में शृण शोधन ( वमन), विरेचन ) क्रिया तथा शस्त्रक्रिया अथवा क्षार या अग्निक्रिया हितकारक होतीहै । भेदजनित विकारोंकी चिकित्सा भष्टौनिन्दनीय अध्यायमें कथन कर आयेहे ॥ २९ ॥
अस्थ्याश्रयाणांव्याधीनांपञ्चकर्माणिभेषजम् ।
बस्तयःक्षीरसपीषितिक्तकोपहितानिच ॥ ३०॥ अस्थिजनित विकारोंमें-वमन,विरेचनादि पंचकर्म, तिक्तकगण तथा दूध,घृतकी बस्तिदारा चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ३० ॥
मज्जाशुक्रसमुत्थानामौषधंस्वादुतिक्तकम् ।
अन्नंव्यवायव्यायामौ शुद्धिःकालेचमात्रया ॥ ३१॥ मजा और शुक्रजनित विकारोंमें मधुर और तिक्त औषधियों द्वारा चिकित्सा करनी चाहिये तथा हित अन्न, उचित मैथुन, व्यायाम एवम् यथा समय उचित मात्रासे संशोधन करना चाहिये ॥ ३१॥
सम्पूर्ण रोगोंमें सामान्य चिकित्सा क्रम ।
शान्तिरिन्द्रियजानान्तुत्रिमर्मीयेप्रवक्ष्यते ॥ ३२ ॥ इन्द्रियजनित विकारों में आगे त्रिमर्मीय चिकित्सित नामक अध्यायमें चिकित्सा स्थानमें कहेंगे ॥ ३२ ॥ स्नाय्वादिजानांप्रशमोवक्ष्यतेवातरोगके। नवेगान्धारणेऽध्यायेचिकित्सासंग्रहःकतः ॥ ३३ ॥ मलजानांविकाराणांसिद्धिश्वोक्ताकचित्त्वचित् ॥ ३४ ॥ स्नायु, शिरा, कण्डरा इनके दोषजनित विकारोंमें(वातव्याधि चिकित्सा अभ्या. यमें कथन करेंगे) वह यल करना चाहिये । मलजनित विकारोंकी चिकित्सा न