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शारीरस्थान-१० १. . (६८३), .
अष्टविध योगवल। आवेशश्चेतलोज्ञानमर्थानांछन्दतः किया। घष्टिःश्रोत्रस्मृतिः कान्तिरिटतश्चाप्यदर्शनम् ॥ १४० ॥ इत्यष्टविधमाख्यातं योगिनांवलसैश्वरम् । शुद्धसत्वसमाधानात्तत्सर्वमुपजायते १४॥ सत्त्वगुणके प्रगट होनेसे योगियोंमें आठ प्रकारका ईश्वरीयवल आजाता है अथवा योगके प्रभावसे प्राप्त हुए ऐश्वर्यकृत बल आजाताहै,जैसे-आवेश अर्थात् परशरीरमें प्रवेश करना अथवा चित्तको परचित्तमें प्रवेश करदेना संपूर्ण भूत भाव: यतका जानलेना, इच्छानुसार क्रिया करना, योगदृष्टिसे संपूर्ण पदार्थोंको देख. लेना, दूरकी वातोंको श्रवण करलेना, पूर्वजन्मके विषयोंको अथवा अन्य सर्व भावोंको स्मरण करलेना, दिव्य कान्तिका होना, प्रकट होना और अन्तर्धान हो जाना । यह ईश्वरीयवल योगाभ्याससे शुद्धसत्त्वगुणके प्रकट होजाने पर उत्पन हो जाते हैं ॥ १४० ॥ १४१॥
___ मोक्षप्राप्तिके उपाय। मोक्षोरजस्तमोऽभावाइलवकर्मसंक्षयात् ।
वियोगःकर्मसंयोगैरपुनर्भावउच्यते ॥ १४२ ॥ रजोगुण और तमोगुणका अभाव होनसे और योगद्वारा बलवान् कर्मके क्षाहोनेसे तथा कर्मके संयोगोंसे वियोग होनेसे जो अपुनर्भाव होताहै अर्थात फिर जन्म - लेनेका अभाव होजाता है उसको मोक्ष कहते हैं ॥ १४२ ॥
दुःखोंसे निवृत्तिके उपाय । लतामुपासनंसम्यगसतापरिवर्जनम् ।
व्रतचोपवासश्चनियमाश्चपृथग्विधाः ॥ १४३ ॥ श्रेष्ठ पुरुषोंका सेवन, दुर्जनोंके संगका त्याग, ब्रह्मचर्यपालन और उपवास इन सबको धारण करना नियम कहाजाताहै ॥ १४३ ॥
धृतिके लक्षण धारणधर्मशास्त्राणांविज्ञानविजनेतिः।
विषयेष्वरतिर्मोक्षेव्यवसायःपराधृतिः ॥ १४४ ॥ धर्मका धारण करना, विज्ञान, निर्जनस्थानमें रात ( प्रीति), विषयोंमें वैराभ्यः मोक्षसाधनमें तत्परता यह सव धृतिक लक्षण हैं॥ १४४ ॥