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चरकसंहिता-मा० टी०॥
राक्षसके लक्षण । अमर्षिणमनुबन्धकोपच्छिन्द्रनहारिणदूरलाहारातिमात्ररुचिमामिषप्रियतसंस्वप्नायालबहुलसीपुंराक्षसंविद्यात् ॥ ५४॥
जो मनुष्य अपने अपमानको न सह सके, जिसके शरीरमें बहुत कालतक क्रोध अनारहे, जो छिद्र पाकर प्रहार करनेवाला हो, कूर स्वभाव हो बहुत आहार करने बाला हो, मांस खानेमें प्रेम रखनेवाला हो, अधिक सोनेवाला हो, अधिक परिश्रम कर सकता हो और ईर्षायुक्त हो उसको राक्षसकाय जानना ॥ ५४॥
पिशाच के लक्षण । महालसंस्त्रैणस्त्रीरहस्कामनशुचिंशुचिषिगंभीरुभीषपितारविकृतिविहाराहारशीलपैशाचंविद्यात् ॥ ५५ ॥
जो मनुष्य अत्यन्त आलसीहो, स्त्रियों में बैठा रहता हो, स्त्री भोगकी इच्छाबाला हो, अपवित्र हो, शुद्धतासे द्वेष रखनेवाला हो,डरनेवालेको डराता हो, विकृत आहार विहारका सेवन करनेवाला हो, उसको पैशाचकाय कहते हैं ॥ ६५ ॥
सापके लक्षण।। जुद्धशूरंप्रकृच्छूमीसंतीक्ष्णनाथालवहुलंलन्त्रशुगोचरमाहारवि हारपरंसापविद्यात् ॥ ५६ ॥ जो मनुष्य क्रोधी, शूर, कठोर, डरपोक, तीक्ष्णस्वभाववाला, अधिक परिश्रम करनेवाला,थोडा कहेको समझ जानेवाला, आहार और विहारसे युक्त हो उसको सार्प काय कहते हैं ॥ ५ ॥
प्रैतके लक्षण। आहारकाममतिदुःखशीलाचारोपचारसयकसविसागिनमतिलोलुपमकर्मशीलप्रैतविद्यात् ॥ ५७ ॥ जो मनुष्य अत्यन्त भोजनकी इच्छा रखता हो, जिसका स्वभार,आचार और उपचार यह सब हाखितसे हों एवम् निन्दक विना विचारे फरनेशाला अतिलोलुप और अकर्मोको करनेवाला हो उसको मेतकाय जानना ॥१७॥
शाकुनके लक्षण । अनुषक्तकालसजस्त्रमाहारविहारपरमनस्थितममर्षिणमसञ्चयंशाकुंनंविधात् ॥ ५८ ॥