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शारीरस्थान - अ० ४.
(७२९)
जो मनुष्य निरन्तर इच्छावाला हो, कामनामें आसक्त हो, हरसमय अपने खाने कमानेकी चिन्तामें लगा रहताहो, अनवस्थित चित्त हो, क्रोधी हो और संचय न करता हो उसको शाकुन अर्थात् पक्षीकाय कहते हैं ॥ ५८ ॥
इत्येवंखलराजलस्य सत्त्वस्यपविषभेदांशंविद्याद्रोषांशत्वात् ९९ ॥
इसप्रकार शेषांशयुक्त होनेसे राजस मनके छः भेद अंशभेदसे जानने ॥ ५९ ॥ पाशवके लक्षण |
निराकरिष्णुमधमवेषस जुगुप्सितारम् ।
आहारविहार मैथुनपरं स्वप्नशीलंपाशवंविधात् ॥ ६० ॥
हरएकको तुच्छ समझनेवाला, अधमवेष धारण करनेवाला, निन्दारहित, आहार विहार और मैथुनमें आसक्त रहनेवाला एवम् अधिक सोनेवाला पाशव शरीर जानना ॥ ६० ॥
मात्स्यके लक्षण । भीरुमबुषमाहारलुग्धमनवस्थितमनुषक्तकाम क्रोधंसरणशीलतोयकाममात्स्यविद्यात् ॥ ६१ ॥
डरपोक, मूर्ख, आहारलोभी, असावधान, कामक्रोधमें आसक्त, इधर उधर फिरने के स्वभाववाला, जलमें फिरनेकी इच्छावाला मनुष्य मत्स्यकाव जानना ६१वानस्पत्यके लक्षण |
अलसंकेवलमभिनिविष्टमाहारे सर्व बुद्धयङ्गहीनं वानस्पत्यवि
द्यात् ॥ ६२ ॥
आलसी, केवल भोजन में ही चित्त लगानेवाला, सब मकारसे बुद्धिहीन मनुष्य वानस्पत्यकाय जानना ॥ ६२ ॥
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इत्येवंखलुतामतस्य तत्त्वस्यत्रिविधं भेदांशविद्यान्माहांशत्यात्३। इसप्रकार तामस सुखके विधिभेदसे, और मोहांशयुक्त होने से तीन प्रकार के वामसी मनुष्य होते हैं ॥ ६३ ॥
इत्यपरिसंख्येय भेदानांखलुत्रयाणामपि सत्त्वानां भेदेकदेशोव्या
ख्यातः ॥ ६४ ॥
इसप्रकार तीनों प्रकारके सवोंके अंश भेदसे असंख्य भेद होजाते हैं । इस - स्थानमें केवल निदर्शन मात्र कथन कियाहै ॥ ६४ ॥