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चरकसंहिता-भा० टी०। शस्तत्करणत्वात्पुरुषस्य इन्द्रियाणांतिजनकोवैदेहस्तान्यस्यबुदयधिष्ठानानीतिकृत्वा । परोक्षत्वादचिन्त्यमितिमारीचिः कश्यपः सर्वाङ्गनिवृत्तियुगपदितिधन्वंतरिः । तदुपपन्नंस. वङ्गिानांतुल्यकालाभिनिवृत्तत्वाद्धृदयप्रभृतीनांसवाङ्गानांह्यस्यहृदयंमलमाधिष्ठानश्चकषाश्चिद्भावानांनचतस्मात्पाभिनिवृत्तिरेषान्तस्माद्धृदयपूर्वाणांसवाङ्गानांतुल्यकालाभिनिवृत्तिः सर्वभावाह्यन्योन्यप्रतिबदास्तस्माद्यथाभूतंदर्शनम् ॥ २३॥ इसप्रकार अग्निवेशके कथनको सुनकर भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे कि हे अग्निबेश ! जिसप्रकार कुक्षीमें गर्भ उत्पन्न होता है. उसका वर्णन तो हम गर्भावक्रांति अध्यायमें करही चुकेहैं और गर्भका जो अंग जिससमय उत्पन्न होताहै यह भी उसीस्थानमें कहचुकेहैं परन्तु जिसप्रकार वहुतसे सूत्रकार ऋषियोंका इस विषयमें पृथक २ मत है उसको श्रवण करो। कुमारशिरा भरद्वाज कहते हैं कि पहिले गर्भमें मस्तक उत्पन्न होताहै । क्योंकि मस्तक संपूर्ण इन्द्रियों का निवासस्थान है।कांकायनबालीक वैद्यका मत है कि प्रथम हृदय उत्पन्न होताहै । क्योंकि चेतनाशक्तिका स्थान हृदयही है भद्रकाप्य कहतेहैं कि पहिले नाभि उत्पन्न होतीहै। क्योंक गर्भको पालनकरनेके लिये आहार नाभिद्वाराही पहुंचताहै । भद्रशौनक कहनेलगे कि पहिले पक्वाशय उत्पन्न हुआ क्योंकि शारीरिक वायुका प्रधान स्थान पक्का. शयही है।बडिश ऋषिका मत है कि पाहिले हाथपैर उत्पन्न होतेहैं क्योंकि हायपरही मनुष्यके करण अर्थात् कार्य करनेवाले हैं । विदेह देशके पति जनकका मत है कि पहिले इंद्रिये उत्पन्न होतीहैं क्योंकि इन्द्रियही बुद्धिके अधिष्ठान हैं। मारीच कश्यप कहते हैं कि यह सब अपरोक्ष है इसके विषयमें यह जाना नहीं जाता कि कौन पहिले तथा कौन पीछे उत्पन्न होतेहैं।और धन्वतरीजी कहते हैं कि संपूर्ण अंग एकही समयमें उत्पन्न होतेहैं सो-हमारे मतम भी हृदय प्रभृति संपूर्ण अंग एकहीसाथ उत्पन्न होतेहैं । संपूर्ण अंगोंका मूल अधिष्ठान हृदय है । किसी भावकी भी हृदयसे प्रथम उत्पत्ति नहीं होती।संपूर्णभावही आपसमें परस्पर उत्पत्तिके विषयमें अपेक्षा रखतेहैं । इसलिये हे अग्निवेश!सब अंगोंका एकही कालमें उत्पन्न होना युक्तिसिद्ध . गभस्तुखलुमातुःपृष्ठाभिमुखऊर्द्धशिराः संकुच्याङ्गान्यास्तेजरा:
युवृतःकुक्षौ । व्यप्रगतपिपासाबुभुक्षुस्तुखलुगर्भःपरतन्त्रवृत्ति- ::