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चरकसंहिता-मा० टी०। इसप्रकार कहतेहुये भगवान् आत्रेयजीसे अग्निवेश वोले कि हे भगवन् ! इतनेहीं -कथनसे आपके वाक्यके अर्थको नहीं जानसकरे । इसलिये आप कृपाकरके इस विषयकी विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिये हमको इसके सुननेकी इच्छा है ॥ २ ॥
और जगत् तथा पुरुषकी तुल्यता। इति तमुवाचभगवानात्रेयः । अपरिसंख्येयालोकाश्यवाविशेपाःपुरुषावयवाविशेषाअप्यपरिसंख्येयाायथायथाप्रधानञ्चतेपायथास्थूलंभावान्सामान्यमाभिप्रेत्योदाहरिष्यामःतालेकमनानिबोधसम्यगुपवर्ण्यमानाननिवेश ! पत्रातबालमुदिता लोकइतिशब्दलभन्ते । तद्यथा-पृथिव्यापस्तेजोवायुराकाशं ब्रह्मचाव्यक्तमित्येतएवचषड्धातवःसमुदिता पुरुषइतिशब्दं लभन्ते । तस्यपुरुषस्यपृथिवीमूर्तिरापःक्लदस्तेजोऽसिलन्ता- .. पोवायुःप्रागोवियच्छिद्राणिब्रह्मान्तरात्मा ॥३॥ यह सुनकर भगवान् आत्रेयजी बोले कि जगत्के अवयवविशेष और पुरुषके अवयव विशेष अपरिसंख्येय हैं अर्थात् गणनामें नहीं सकताउनमें जो र जैसे २ प्रधान और स्थूल भाव हैं उनको सामान्यतासे उदाहरणके लिये वर्णन करतेहैं । हेअग्निवेश ! उन भलेप्रकार वर्णन कियेहुए भावोंको एकाग्रचित्त होकर श्रवण करो। छ: धातुओंसे मिलाहुआ जगत् है ऐसा सुनने आता है वह छ' धातुएँ इसप्रकार हैं। जैसे-पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश और अव्यक्तब्रह्म इनसे सम्मिलित मूर्तिमान जगत है इसीप्रकार पुरुष भी यही छः धातुओंसे सम्मिलित है । जैसेपृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश तथा आत्मा यह दोनों धारा बराबर देखनमें आती हैं । जैसे मूत्तिमान् जगत्में यह मूर्तिमान पृथ्वी देखने में आतीहै उसीप्रकार दूसरीओर पुरुषका शरीर पृथ्वी है । जैसे एकओर जगत्में जलका प्रवाह है वैसेही पुरुषके शरीरमें क्लेदरूप जल है । जैसे जगत्में एकओर अग्नि है उसीप्रकार दूसरीऔर पुरुषमें जठरामि है जैसे जगतमें एकओर पूर्वपश्चिमकी वायुका गमन है वैसही दूसरी ओर पुरुषके शरीरमें प्राण और अपानवायुला गमन होताहै। जैसे . भर्चिमान् जगत्में एकओर आकाश है ऐसे ही दूसरीओर शरीरमें छिद्रसमूहरूपी आकाश है । जैसे मूर्तिमान जगत्में एकओर जगत्का प्रकाशक ब्रह्म है उसीप्रकार दूसरीओर शरीररूपी जगत्को प्रकाश करनेवाला आला है। इसमकार दोनोंओर दोनों धारा देखने में बरावर आती हैं ॥३॥