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चरकसंहिता-भा० टी०। अभिनिवेष त्यागमें है । इसप्रकारका निश्चय करे । यही मक्षिका सीधा मार्ग है। इससे विपरीत प्रवृत्तिमार्ग है। उससे मनुष्य दुःखसे बंधजाता है मोक्षका सुख प्राप्त करनेके लिये इन निवृत्ति मार्गोंका कथन किया है ॥ २२॥
भवन्तिचात्र । एतैरविमलसत्त्वशुद्धयुपायैर्विशुध्यति । मृज्यमानइवादर्शस्तैलचैलकचादिभिः॥२३॥ ग्रहाम्बुदरजोधूमनीहारैरसमावृतम् । यथार्कमण्डलंभातिभातिसत्त्वंतथामलम् ॥२४॥ज्वलत्यात्मनिसंरुद्धंतत्सत्त्वंसंवृतायने । शुद्धःस्थिरःप्रसन्नाचिर्दीपोदीपाशयेयथा ॥ २५॥ इन सब शुद्ध उपायोंद्वारा मन निर्मल होजाताहै । जैसे-तैल, वस्त्र और वाल आदिकोंसे साफ कियाजानेपर शीशा निर्मल होजाताहै तथा घर, वादल, धूल, धूम, निहार इनसे ढका हुआ सूर्यमण्डल प्रतीत नहीं होता उसीप्रकार अहंकारादिकोंसे व्याप्त हुआ मन होनेपर ज्ञानका प्रकाश नहीं होता।और उन वादलादिकोंके उडजानेसे सूर्यका स्वच्छ प्रकाश दिखाई देने लगताहै उसीप्रकार अहंकार आदिकोके चले जानेसे मन स्वच्छ होजाताहै । जिस प्रकार स्थिर और प्रसन्न दीपक्की ज्योति शुद्ध रीतिसे टिकाई जानेपर निर्मल टिका हुआ प्रकाश करतीहै उसीप्रकार शुद्धसत्व आत्मामें ज्ञानका प्रकाश करता है ॥ २३ ॥ २४ ॥ २५ ॥
शुद्धसत्वबुद्धिका कथन । शुद्धसत्त्वस्ययाशुद्धासत्याबुद्धिःप्रवर्तते। ययाभिनत्यतिबलंमहामोहमयंतमः ॥ २६ ॥ शुद्ध सत्त्वसे शुद्ध सत्य जो बुद्धि उत्पन्न होतीहै । जिस बुद्धिसे महामोहरूपी अतिबलवान् अंधकार दूर होजाताहै ॥ २६ ॥
सर्वभावस्वभावज्ञोययाभवतिनिस्पृहः। योगेययासाधयतेसांख्यःसम्पद्यतेयया ॥ २७॥ यया नोपैत्यहकारंनोपास्तकारणं,
यया । ययानालम्बतकिञ्चित्सर्वसंन्यस्यतेयया ॥ २८ ॥ . यातिब्रह्मययानित्यमजरःशान्तमक्षरम् । विद्यासिद्धिर्मतिमें:: : धाप्रज्ञाज्ञानश्चसामता ॥ २९॥ . .
जिस बुद्धिके द्वारा मनुष्य संपूर्ण भावोंके स्वभावोंको जानताहुमा निष्क्रिक