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शारीरस्थान-अ०. ६. . (७४५).
गुरु और लघुधातुओंका वर्णन। . तेषयेगुरवोधातवोगुरुभिराहारविकारगुणैरभ्यस्यमानराप्या: य्यन्तेलघवश्चह्नसन्ति । लघवस्तुलघुभिरेवाप्याय्यन्तेगुरवश्चह्नसन्त्येवमेवसर्वधातुगुणांनांसामान्ययोगावृद्धिविपर्ययाद्रासः ॥ १०॥ उनमें जो गुरु धातु हैं वह गुरुगुगवाले आहारके सेवनसे बढतेहैं और लघुधातुएं भास होती हैं । इसप्रकार लघुगुणवाले द्रव्योंके सेवन करनेसे लघुधातुएँ पुष्ट होतीहैं । और गुरुधातुएँ हास होती हैं । इसप्रकार सम्पूर्ण धातुओंकी समानगुणवाले द्रव्यसे वृद्धि और विपरीत गुणवाले द्रव्योंसे हास होताहै ।। १० ।।
प्रतिधातुओंकी वृद्धिका हेतु । तस्मान्मांसमाप्याय्यतेमांसेनसूयोन्येश्यःशरीरधातुभ्यः। तथा लोहितंलोहितेनमेदोमेदसावलावसयाअस्थितरुगास्थनाम
जासज्जयाशुक्रंशुक्रेणगर्भस्वामगर्भेण ॥ ११ ॥ इसलिये और धातुओंकी अपेक्षा मांसके खानेले मांस । रुधिरसे रुधिर। चौसे चढे । कोमल अस्थियोंसे अस्थिय । मज्जासे मज्जा । वार्यसं वीर्य बढताहै। इसी प्रकार गर्भ-आमगर्भके सेवनसे पढताहै ॥ ११ ॥
समानकी अप्राप्तिमें उपाय । यनतएवंलक्षणेनसामान्येनलामान्यवतामाहारविकाराणामसान्निध्यस्यात् । सन्निहितानांवापिअयुक्तत्वानोपयोगोघृणित्वादन्यस्माद्वाकारणात्सवधातुरभिवयितव्यास्यात् ।तस्य येसमानगुणाःस्युः आहारविकारा. असेव्याश्चतत्रसमानगणमूयिष्ठानामन्यंप्रकृतीनामपिआहारविकाराणामुपयोगःस्यात् इस स्थानमें इस सामान्य निर्देशसे संपूर्ण आहार आदिकोंका. भाव जानना । शरीरके धातुओंके समानगुणवाले मांसआदि आहारसे मांस आदिकोंकाही आव. श्यक कथन नहीं है किन्तु मांस आदिआहार बढानेवाले जो आहारविशेष हैं उनका प्रयोजन है । जिनको मांस आदिकोंसे घृणा है अथवा न मिलनेसे वा अन्य किसी कारणसे वह असेवनीय है उनको मांस आदिके बढानेवाले अन्य दूध, दाल भादि पदार्थ सेवन करने चाहिये ॥ १२॥ ।