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चरकसंहिता-भा० टी०। करना अथवा जिंसप्रकार सेवन करनेसे धातुएं साम्य रहें उसप्रकार साधन करना उचित है । तथा जिसके सेवनसे जो धातु अधिक होनेवाली हो उससे विपरीत व्यका सेवन करना और चेष्टा करना धातुओंको सात्म्य रखताहै ॥ ६ ॥
स्वस्थके धातुसाम्य रखनेका उपदेश । देशकालात्मगुणविपरतिानांहिकर्मणामाहारविकाराणाञ्चक्रमणोपयोगःसम्यक् । सर्वाभियोगोनुदीर्णानांसन्धारणमसन्धारणमुदीर्णानाञ्चगतिमतांसाहसानाञ्चवर्जनम् । स्वस्थवृत्तमेतावद्धातूनांसाम्यानुग्रहार्थमुपदिश्यते ॥ ७॥ देश, काल और आत्मगुणसे विपरीतकर्मीका तथा आहारसमूहोंका क्रमपूर्वक उपयोग करना अर्थात् शीतदेशमें गर्म वस्तुओंका उपयोग और उष्णदेशमें शीत वस्तुओंका उपयोग करना । इसीप्रकार शीतकालमें उष्णपदार्थोंका सेवन और उष्णकालमें शीतपदार्थोंका सेवन एवम् रूक्ष प्रकृतिको स्निग्ध द्रव्योंका सेवन करना और स्निग्धको रूक्षका सेवन करना इत्यादि कर्म तथा जो वेग आयेहुए हैं उनको धारण न करना और नहीं आयेहुए वेगोंको धारण करना,साहसीकोको छोडदेना यह सब स्वस्थ मनुष्योंकी धातुओंको सात्म्य रखने के लिये कथन कियगयेहैं ॥७॥
___ धातुओंकी वृद्धि और ह्रासका कारण । . धातवःपुनःशारीराःसमानगुणैःसमानगुणभूयिष्ठैवापिआहारविहारैरत्यस्यमा वृद्धि प्राप्नुवन्तिह्रासन्तुविपरीतगुणैर्विपरीतगुणभूयिष्ठेप्यिाहारैश्यस्यमानैः ॥ ८॥ शरीरकी धातुएँ अपने समान गुणाले तथा समानगुणविशेषवाले आहारवि. हारोंके सेवनसे वृद्धिको प्राप्त होती हैं । और विपरीतगुणवाले तथा विपरीतप्रभाववाले आहार, विहारसे धातुएँ ह्रासको प्राप्त होती हैं ॥ ८ ॥
धातुओंके गुण । तोमेशरीरधातुगुणाःसंख्यासामर्थ्यरूपकरास्तद्यथागुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षमन्दतीक्ष्णस्थिरसरमृदुकठिनविशदपिच्छिलश्लक्ष्णखरसूक्ष्मस्थूलसान्द्रद्रवाः ॥९॥ उन शारीरिक धातुओंके गुण इसप्रकार हैं और वह संख्या, सामर्थ्य और रूपके विभागसे जानने चाहियोजैसे गुरु,लघु,शीत,उष्ण,स्निग्ध,रूक्ष,मंद, तीक्ष्ण, स्थिर,सर,मृदु, कठिन, विशद,पिच्छिल,श्लक्ष्ण,खर,सूक्ष्म,सान्द्र स्थूल और द्रव॥९॥