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चरकसंहिता-माल्टी। वचनप्रतिवचनशक्तिसम्पन्नंस्कृतिमन्तंकामक्रोधलोभमानमो-. हेाहर्षोपेतंसमंसर्वभूतेषुब्राझविद्यात् ॥ ४५ ॥ जिस मनुष्यमें पवित्रता,सत्यता, जितात्मता, विचार, ज्ञान, विज्ञान, वचनशक्ति.. प्रतिवचनशक्ति, स्मृति यह सव सम्पत्तियें होतीहैं तथा काम, क्रोध, लोभ, मान, मोह, राग, और देष यह नहीं होते और सम्पूर्ण जीवमात्रमें एकसी दृष्टि रखते हैं उनको ब्रायमनुष्य कहतेहैं ॥ ४५ ॥
आर्षका लक्षण । इज्याध्ययनवतहोमब्रह्मचर्यमतिथित्रतमुपशान्तमदमानरागद्वेषमोहलोभरोषप्रतिभावचनविज्ञानोपधारणशक्तिसम्पन्नमाविद्यात् ॥४६॥ जो मनुष्य-यजन, अध्ययन, व्रत, होम, ब्रह्मचर्य, अतिथिव्रतका पालन करते हैं। और मद, मान, द्वेष, राग, मोह, लोभ,रोष रहित हों तथा प्रतिवचन, विज्ञान, उपधारणशक्तिसंपन्न होतेहैं उनको आर्ष जानना ॥ ४६ ।।
ऐन्द्रका लक्षण । ऐश्वर्यवन्तमादेयवाक्यंयज्वानशूरसोजस्विनंतेजसोपेतमाक्लिष्टकर्माणदीर्घदार्शनंधमार्थकामाभिरतसैन्द्रविद्यात्॥४७॥
जो मनुष्य ऐश्वर्ययुक्त हों, जिनकी आज्ञाको लोग मानतेहों, यज्ञ आदि करतेहों एवम् शूर, ओजस्वी, तेजस्वी, अनिन्दितकर्मा, दीर्घदशी, धर्म अर्थ और काममें प्रवृत्त हों उनको ऐन्द्र जानना ॥४७॥
याम्यके लक्षण । लेखास्थवृत्तंप्राप्तकारिणमसंहार्यमुत्थानवन्तस्मृतिमन्तमैश्व
ालम्बिनंव्यपगतरागद्वेषसोहंयास्यविद्यात् ॥४८॥ जो मनुष्य शास्त्रके माननेवाले हों, कर्त्तव्य, अकर्तव्यको विचारकर करनेवाले हों, समयपर चूकनेवाले न हों, जिनका कार्य अप्रतिहत हो । उत्थानवान् हों,स्मृ. तियुक्त हों, ऐश्वर्यावलम्बी हों और राग, द्वेष तथा मोहसे रहित हों उनको यास्यशरीर कहतेहैं ॥४८॥
वारुणके. लक्षण। · शूरंधीरंशुचिमशुचिद्वेषिणयज्वानमम्मोविहाररतिमलिष्टकर्मा
गंस्थानकोपप्रसादंवारुणंविद्यात् ॥ ४९ .