________________
-
-
(६९८)
चरकसंहिवा-मा. टी. इसके उपरान्त भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे कि यह गर्भ मातृज है और पितृज है. तया भात्मज और सात्म्यज एवम् रसज है और सत्त्वसंज्ञक मन इस गठनके. संबंधको उत्पन्न करताहै ॥३॥
नेतिभरद्वाजः । किंकारणहिनमातानपितानात्मानंसात्म्यंनपा नाशनभक्ष्यलेह्योपयोगागर्भजनयन्तिनचपरलोकादेत्यगर्भसखसंज्ञकमवकामति । यदिहिमातापितरोग जनयेतांभूयस्यश्चस्त्रियःपुमांसश्चभूयांसःपुत्रकामा,तेसर्वेपुत्रजन्माभिसन्धायमैथुनधर्ममापद्यमानाःपुत्रानेवजनयेयु हितर्वादुहितकामाः। नचकाश्चिस्त्रिय केचिद्वापुरुषानिरपत्याः स्युःअपत्यकामांश्चपरिदेवेरन् । नचात्मात्मानंजनयति । यदिह्यात्मात्मानंजनयेज्जातोवाजनयेदात्मानमजातोवाजनयति तच्चउभयथाप्ययुकम् । नहिजातोजनयतिसत्त्वान्नचैववाजातोजनयेत्सत्त्वात्तस्मादुभयथाप्यनुपपत्तिस्तिष्ठतु । अथतावदेतयदिअयमात्मानंशक्तोजनयितुंस्यान्नतुएनमिष्टास्वेवकथंयोनिषुजनयेद-: : शिनमप्रतिहतगतिकामरूपिणतेजोबळजववर्णसत्त्वसंहनन·
समुदितमजरमरुजममरमेवंविधहिआत्मात्मानमिच्छन्नित्य. तोवाभ्यः ॥४॥ . . . ....
भरद्वाज कहनेलगे कि ऐसा नहीं होता ।गर्भके कारण मावा,पिता, आत्मा और सात्म्म इनमेंसे कोई नहीं तथा न पान, अशन, भंश, लेह्य पदार्थही.गर्भकों उत्पन्न कर सकतेहै.। एवम् परलोकसे भाकर सत्त्वसंज्ञक मनं भी गर्भको. उत्पन्न नहीं कर सकता । यदि मातापिताही गर्भको उत्पन्न कर. सकते वो बहुत से सवानकी इच्छा . वाले स्त्री पुरुष पुत्रकी कामनासे मैथुनधर्मको प्रवृत्त होकर बहुतसे पुत्र उतन्त्र । करलेते और कन्याकी इच्छावाले कन्या उत्पन्न करलेते । और जगदमें कोई स्त्री और कोई पुरुष भी संतानरहित न रहता संतान के लिये उनको किसी मकारके देव भादिक मनाने अथवा व्याकुल रहनेकी आवश्यकता न पडती । संपूर्ण जगवहीं. : अपनी इच्छानुसार संवानवाला होजाता। आस्मा भी आत्माको उत्पन्न नहीं कर संकर मार न स्वयं उत्पन्न होता है। यदि आत्मा · आत्माको उत्पन्न करे तो जन्म किसको हुआ। वह आत्मा मात्माको प्रगट करता है जिसका जन्म होचुका । अथवा
..
..
.
.
.
.
..
.
.