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शारीरस्थान - अ० ४.
( ७२३ )
रीरमुपसर्पन्तः शोणितगर्भाशय दूषयन्तितदायं गर्भलभतेत्री वदागर्भस्य मातृजानामवयवानामन्यतमोऽवयवोविकृतिमापद्य - ते एकोथवानेकः ॥ ३३ ॥
जव स्त्री दोषोंके कुपित करनेवाले पदार्थों को सेवन करती है तब उसके शरीरमें दोष कुपित होकर रक्तको और गर्भाशयको दूषित कर देते हैं। फिर जब वह गर्भकों - धारण करती है तो उस गर्भके मातृज अवयव अथवा अन्य अवयव एक अथवा - अनेक अवयव विकृत होजाते हैं ॥ ३३ ॥
यस्ययस्यह्यवयवस्यवीजेवीजभागेवादोपाः प्रकोपमापद्यन्तेतंतमवयवविकृतिराविशति ॥ ३४ ॥
गर्भके जिस २ वीजावयवको दोष दूषित करते हैं वही २ व्यवयव अर्थात् वही२ "हिस्सा विगड जाता है | ॥ ३४ ॥
यदाह्यस्याः शोणितगर्भाशयवजिभागः प्रदोषमापद्यतेतदावन्ध्यांजनयति । यदापुनरस्याः शोणिते गर्भाशयवजिभागावयवः प्रदोषमापद्यते तदापूतिप्रजांजनयति ॥ ३५ ॥
जब गर्भ में दोष वीर्यके रजभाग और गर्भाशयकर्त्ता वीजके भागको दोष दूषि तकर देते हैं तो इसको बन्ध्या कन्या उत्पन्न होती हैं। जब दोष स्त्रीके रजमें गर्भाशयके वीजभाव अवयवको दूषित कर देता है तब उस स्त्रीको दुर्गंधित संतान उत्पन्न होती है अथवा सड़ी गली होती है ॥ ३५ ॥
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यदात्वस्याः शोणितगर्भाशयवीज भागावयवः स्त्रीकराणाञ्चशरीरवीजभागानामेकदेशःप्रदोषमापद्यते तदाख्यारूतिभूयिष्ठामस्त्रियंवतीनामजनयतितांस्त्रीव्यापदमाचक्षते ॥ ३६ ॥
जब उसके रजमें गर्भाशय वीजभाग को दूषित कर स्त्रीके शरीर के एक देश भागको दूषित कर देता तो योनिरहित स्त्रीके आकारवाली वार्तीक नामकी सन्तान उत्पन्न होती है इसप्रकार वीके गर्भाशयमें दोष कृपित होकर गर्भको हानि पहुंचाते हैं ॥ ३६ ॥८ दूषित शुक्रजन्य विकृतावयव ।
एवमेवपुरुषस्यबीजदोषेपितृजावयवविकृतिविद्याद्यदा पुनरस्य वीजेबीजभागावयवः प्रदोषमापद्यते तदापूतिप्रजांजनयति ॥३७॥
१ रान्ता इतिपाठान्तरम्