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शारीरस्थान-अ०४.
(७२१) पांचवें महीनमें गर्भका लक्षण । पञ्चमेसालिगर्भस्यमांसशोणितोपचयोभवतिआधिकमन्येभ्यो मासेभ्यस्तस्मात्तनागर्भिणीकार्यमापयतेविशेषेण ॥ २४ ॥ पांचवें महीने में गर्भके मांस और रक्तकी वृद्धि अन्य महीनों से अधिक होती। इसलिये गर्भवती लीका शरीर विशेषतासे कृश होनेलगताहै ।।.२४ ।।
छठे महीने में गर्भका लक्षण ।। पष्ठेसालिगर्भस्यवलवर्णोपचयोभवतिअधिकमन्येभ्योमासेभ्यस्तस्मात्तदागर्भिणीवलवर्णहानिमापद्यतेविशेषेण ॥२५॥
छटवें महीने में गर्भके बल और वर्णकी अन्य महीनों से अधिक वृद्धि होतीहै । इसलिये गर्भवती स्त्री वल और वर्णकी हानि विशेषरूपसे होतीहै ॥ २५ ॥
सातवें महीने में गर्भलक्षण। सप्तमेमासिगर्भःसर्वभावराप्यायतेऽस्याः।
तस्मात्तदागर्भिणीसर्वाकारे क्लान्ततमाभवति ॥२६॥ सातवें महीने में संपूर्ण भाषोंसे गर्भ पुष्ट होजाताहै । इसलिये गर्भिणी सवप्रकारसे क्लान्त अर्थात् व्याकुलसी रहतीह ।। २६ ॥
आठवें महीनेमें गर्भके लक्षण । अष्टमेमासिगर्भश्चमातृतोगर्भतश्चमातारसवाहिनीभिःसंवाहिनीभिर्मुहुर्मुहुरोजःपरस्परतआददातिगर्भस्यासम्पूर्णत्वात्तस्मात्तदागर्भिणीमुहर्मुहुःसुदायुक्ताभवतिसुहुर्मुहुश्चग्लानातस्मात्तदागर्भस्यजन्सव्यापत्तिमद्भवत्योजलोनवस्थितत्वात्तश्चैवमः भिसमीक्ष्याप्टमंमासागर्भण्यमित्याचक्षतेकुशलाः ॥ २७॥
आठवें महीने में गर्भ गात से और माला गर्भसे सस वहन करनेवाली नाडियों द्वारा परस्पर ओलको ग्रहण करते । और गर्भ संपूर्ण होताह । इसलिये गर्भवती स्त्री वारंवार यानन्दयुक्त और वारंवार ग्लानियुक्तोगी जातीहै। उससमय गर्भ ओज.स्थिरभावसे नहीं होता । इमी.लये चुदिमानोंने अष्टग महीना बालकके उत्पन्न होने का नहीं माना है। क्योंकि आटो महीनेका उत्तन्न हुआ बाल गीत नहीं है ।। २७॥