________________
६:५०१) चरकसंहिता-भा० टी०॥
मनुपविश्यशुकशोणितास्यांसंयोगमेत्यगर्भवेनजनयत्यात्म- ... • नात्मानमात्मसंज्ञाहिग तस्यपुनरात्मनोजन्मादिसत्त्वान्नो:
पपद्यत तस्मादजातएवायंजातंग जनयति जातोऽप्यजातञ्चगर्भजनयति । सचेवगर्भकालान्तरेणवालयवस्थविरभावानवाप्नोति ॥ १०॥ यह गर्भ आत्मज भी है क्योंकि गर्भात्माही अन्तरात्मा और जीवके नामसे उच्चारण किया जाताहै।यह अन्तरात्मा नित्य, निरोग, अजर, अमर, अक्षय,अभेय, अच्छेद्य, अलेह्य, विश्वरूप, विश्वकर्मा, अव्यक्त, अनादि, मृत्युरहित अक्षर कहा जाताहै । यह गर्भाशयमें अनुप्रवेश कर शुक्रशोणितके साथ मिलजाताहै तवही गर्भ उत्पन्न होजाता है । आत्माही मात्माको उत्पन्न करताहै । गर्भही. इसकी आत्मा संज्ञा होती है । यदि अजात आत्माही स्वयं अपनेको गर्भमें प्रगट न करता तो अनादि और नित्य होनेसे इसका जन्म लेना किसीप्रकार सिद्ध नहीं होसकता। इस लिये यह अजात होताहुआ भी जातगर्भको उत्पन्न करताहै । और जात होकर भी अजात रहता है। वह गर्भ समय पाकर प्रगट होनेसे वाल्पावस्था यौवनावस्था और वृद्धावस्थाको प्राप्त होताहै ॥ १०॥ सयस्यांयस्यामवस्थायां वर्तते तस्यांतस्यांजातोभवतियात्वस्यपुरस्कृतातस्यांजनिष्यमाणश्चतस्मात्सएवजातश्चाजातश्च युगपद्भवतितस्मिश्चैतदुभयंसम्भवतिजातत्वञ्चैवजनिष्यमाणत्वञ्च । सजातोजन्यतेसचैवानागतेष्ववस्थान्तरेषुअजातो जनयत्यात्मनात्मानम् ।सतोह्यवस्थानुगमनमात्रामवहिजन्म चोच्यतेतत्रतत्रवयसितस्यांतस्यामवस्थायाम् । यथासतामेव शुक्रशोणितजीवानांप्रासंयोगादर्भत्वंनभवतितचसंयोगाद्भवति। यथासतस्तस्यैवपुरुषस्यप्रागपत्यात्पितत्वंनभवतितच्चा-य पत्याद्भवति । तथासतस्तस्यैवगर्भस्यतस्यांतस्यामवस्थायां जातत्वमजातत्वञ्चोच्यते ॥११॥ वह गर्भ जिस२ अवस्थामें जैसेररहताहै उसीउसी अवस्थामें जात मानाजाताहै। जो अवस्था इसकी आनेवाली है उस अवस्थाको जानिष्यमाण कहते हैं । इसलिये एककालमेंही इसमें जात और अजात दोनों धर्म रहतेहैं।अतएव इसमें जातत्व और