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1७१४) . चरकसंहिता-भा० टी०।
गर्भके वैकारिक द्रव्य । . गर्भस्तुखलुअन्तरिक्षवावशितोयभूमिविज्ञारश्चेतनाधिष्ठान
भूतएवमनौवयुच्यापञ्चमहाभूतविकारलसुदापासकोगीश्चतनाधावधिष्ठानसूतःलाल्यषष्ठोधातुरुतः ॥३॥
वह गर्भ-आकाश, वायु, आग्ने,जल, पृथ्वी और चेतनाका अधिष्ठानभूत है।इस लिये गर्भ-पञ्चमहाभूतोंके विकारोंका समुदायात्मक है और चेतनाधातुका अधिठानभूत है । वह चेतनाही गर्भकी छठी धातु मानीजातीहै ॥ ३ ॥
गर्भकी आनुपूर्विक उत्पत्ति । यथात्वालुपूाभिनिवर्ततेकुक्षौतदनुव्याख्यास्यामः । गते पुराणेरजलिनवेचअवस्थितप्नःशुद्धस्नातांत्रियमव्यापचयोनिशोणितगर्भाशयामृतुमतीमाचक्ष्महेतयातहतथाभूतयायदा पुमानव्यापनबीजोमिश्रीभावंगच्छतितस्यहषोंदीरितःपरःशरीरधात्वात्माशुक्रभूतोऽङ्गादङ्गात्सम्भवति । स तथाहर्षसूतेनात्मनोदीरितश्चअधिष्ठितचीजधातुःपुरुषशरीरादभिनिष्पद्योदितेनहितेनपथागर्भाशयमनुप्रविश्यातवेनाभिसंसर्गमेति । तत्र पर्वचतनाधातुःसत्त्वकरणोगुणग्रहणायपुनःप्रवर्तते । सहिहेतु:कारणंनिमित्तसक्षरकर्तासन्तावेदिताबोद्धाद्रष्टाधाताब्रह्माविश्वकर्माविश्वरूपःपुरुषःप्रभवोऽव्ययोनित्यःगुणीग्रहणंप्राधान्य. मव्यक्तंजीवोज्ञःप्रकुलश्चेतनावान्विभुर्भूतात्माचेन्द्रियात्माचान्तरात्माचेति॥४॥ जिसप्रकार आनुपूर्विक क्रमसे कुक्षीमें गर्भ उत्पन्न होकर परिणत होताहुआ वृद्धिको प्राप्त होताहै अब उसका वर्णन करतेहैं । जब स्त्री प्राचीन रजके निवृत्त हानेसे नवीन रजोदर्शन होनेके अनन्तर शुद्धस्नान करलेतीहै और रजके साफ होजानसे उसकी योनि स्रावराहत होकर गर्भाशय शुद्ध होताहै । उससमय वह स्त्री गम. नीया अर्थात् पुरुषके सहवासयोग्य होतीहै । उस स्त्रकेि साथ शुद्धवीर्यवाले पुरुषका संयोग होकर शरीरकी सम्पूर्ण धातुओंका सारभूत वीर्य आनन्दके कारण शरीरभेसे प्रचलित होताहै । वह वीर्य आनन्दयुक्त आत्मासे उदीरित हुआ जीवधातु पुरुषके शरीरसे निकलकर उसी रास्तेसे गर्भाशयमें प्रवेश हो शुद्ध आर्तर: